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फ़रवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरी त्रिवेनियाँ-1

साथियों, ऑरकुट की कम्युनिटी महकार-ऐ-शफक पर लिखी अपनी जनवरी तक की त्रिवेणियों को आपके सामने रख रहा हूँ. प्रयास कैसे हैं ये तो आप लोग ही बताएँगे. * This is my first trial to write a Triveni, नेता-अफसर मिलकर के खाते जाते देश और इधर टीवी पर बिग बी देते हैं सन्देश हाजमोला-हजम सब चाहे जब(बिना डकार लिए) 29.12.2009       *दिल की राख जब से फिजाओं में बिखरी है इन फिजाओं में फैली भीनी-भीनी खुशबू है. दिल भले राख हो गया हो मगर दिल है ना. 30.12.2009       *नव वर्ष शिशु आया है नयी आशाओं के साथ नव वर्ष शिशु आया है मुस्कान की भाषा के साथ तुम्हारे हाथों में बन्दूक देख डर ना जाये वो कहीं. 01.01.2010       * अनमना-सा मन है, पीड़ा है अनकही तुमको क्या, करते रहो तुम अपनी बतकही वैसे भी तुम तो खुशियों के ही साथी हो. 03.01.2010     * Aaj raat meri 'Wo' jo mujhse kah rhi thi, usi ko dhala hai maine is Triveni me- और कुछ हो न पता पर पता है मुझको ये बात आजकल नींद नही आती होगी तुमको सारी रात की सारी नींद तेरी मेरे हिस्से में जो चली आई है. 05.01.2

धडकनों का इंस्पेक्शन

तेरी यादें जब भी दिल के गलियारे से गुजरती हैं धडकनें थोड़ी टेंशन में, खड़ी attention में उसको देख कर बजाती है एक कड़क-सा सैल्यूट. तुम्हारी यादें धडकनों का इंस्पेक्शन करती हैं चेक करती हैं कि धडकनों कि वफादारी किसी और के लिए तो नही.. धड़कने किसी और के लिए तो नही धड़कती हैं.. और फिर एक गर्व भरी टेढ़ी-सी मुस्कान लिए अपने चेहरे पर दिल के गलियारों से आगे बढ़ लेती है. धडकनों को तो ये भी पूछने का हक नही कि तेरी यादें किसी और की धडकनों की सलामी तो नही लेती....?

प्रेम दिवस के अवसर पर एक ग़ज़ल

साथियों, प्रेम दिवस  के  अवसर पर थोड़ी देर से  ही  सही पर अपनी ताजी-ताजी ग़ज़ल लेकर आपकी सेवा में हाजिर हो रहा हूँ. आप सब को मेरी शुभकामना की आप सब के जीवन में सच्चा प्रेम आये और आप उसे पहचान कर उसे अपनी जिन्दगी बना सके और फिर औरों की जिंदगियों में भी प्रेम भरी खुशियाँ फैला सके. प्यार कभी मुहताज नही मैं शाहजहाँ नहीं और तू मुमताज नही! अपने प्रेम की निशानी कोई ताज नही!! दिल ने तब भी छेड़े गीत तुम्हारी यादों के! जब हाथों में मेरे कोई साज नही!! बिछड़े हमको कितने ज़माने-से बीत गए! विरहा की बातें करती रहना, आज नही!! वो भी वक़्त था लोग कहते थे जब हमसे! इश्क को छोडके तुमको कोई काज नही!! राधा के हर आंसू का है दर्द पता! पर दिल कहता, कान्हा धोखेबाज नही!! अरमां करता मैं भी ताज बनाऊ इक! दिल कहता है प्यार कभी मुहताज नही!! ----------*******------------

मुंबई और मेलबोर्न

साथियों, एक कच्ची-सी कविता आपके सामने रख रहा हूँ, जान-बूझकर इसे पकाया नही क्यूंकि यह कविता महत्वपूर्ण नही, विषय महत्वपूर्ण है. प्रवासियों के मुद्दे पर इस दोहरे मापदंड पर आप लोगों के विचारों का इंतजार रहेगा. अपने ही देश में पराये बनते लोगों की पीड़ा को देश की जनता की सकारात्मक और मानवीय सोच ही मिटा सकती है. हे मुंबई के महामहिम नेता! काश की तुम या तुम्हरा कोई सगा आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रही नस्लीय हिंसा का शिकार होता; तब शायद तुम समझ पाते यूपी, बिहार और भारत के कोने-कोने से पढाई, रोजगार या किसी और मरीचिका के पीछे मुंबई में आकर झोपड़पट्टियों या माचिस के डिब्बों जैसी काल-कोठरियों में जैसा-तैसा जीवन गुजारते लोगों की भय, विवशता और बेबसी को. शायद फिर तुम कभी नही बांटते मुंबई को मेरी-तेरी के सींखचों में. कहते यही तुम कि मुंबई तो हमारी है. कहते तुम कि मुंबई तो हर उस की है जो दिल-और-जान से इसका है. काश कि तुम एक बार नेता की जगह, इंसान बन कर सोचते!

प्रेम अकेला कर देता है: इश्क का फ़लसफा

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