तीन त्रिवेणियाँ- दूसरी कड़ी
१. ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर | सर्द से कांपा किया था रात भर || आँख को क्या, चैन से सोई रही | ०७-५-२०११ २. मौत को जब करीब से देखा झूठे ख्वाबों से हुई रुसवाई, जिंदगी इक भरम नजर आई | मौत को जब करीब से देखा | ०१-५-२०११ ३. फुर्सत नहीं है वक्त दौड़ता जाता, जिंदगी थमी सी है| आजकल हर किसी को वक्त की कमी सी है || जिससे मिलता हूँ, यही कहता है-फुर्सत नहीं है | १६-७-२०११