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तीन त्रिवेणियाँ- दूसरी कड़ी

१. ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर | सर्द से कांपा किया था रात भर || आँख को क्या, चैन से सोई रही | ०७-५-२०११ २. मौत को जब करीब से देखा झूठे ख्वाबों से हुई रुसवाई, जिंदगी इक भरम नजर आई | मौत को जब करीब से देखा | ०१-५-२०११ ३. फुर्सत नहीं है वक्त दौड़ता जाता, जिंदगी थमी सी है| आजकल हर किसी को वक्त की कमी सी है || जिससे मिलता हूँ, यही कहता है-फुर्सत नहीं है | १६-७-२०११

तीन त्रिवेणियाँ

१ तेरी नजरों की छुअन तुम जिन निगाहों से देखती हो मुझे यूँ तो मैं लोहा हूँ मगर, सोना बना देती है मुझे,तेरी नजरों की छुअन. २२-५-२०१० २. इश्क में सीखा है हमने इश्क में सीखा है हमने फैलना आकाश-सा सूखी जमीं पे फैलती जाती सी नन्ही घास-सा. जो समेत डाले खुद में, उस प्यार से दूरी भली. ९-७-२०१० ३. मजबूरियां हौसलों को हार, ना स्वीकार है रौशनी को अंधेरों से कब प्यार है मगर, सबके साथ हैं कुछ मजबूरियां चस्पां. २९-३-२०११

रिश्ते

रिश्तों की डोर, कहाँ उलझी, कहाँ टूट गयी? ना की परवा इसकी, तो जिंदगी हमसे रूठ गयी || रिश्तों के टूटे हुए धागों से घिरे बैठे हम | सोचते हैं कि क्या इनकी मजबूती को लूट गयी || रिश्तों के जिस घर में सिर्फ दीवारें, दरवाजें नहीं | जिंदगी ऐसे घर में अपनी झूठ-मूठ गयी || रिश्ते शतरंज की बिसात पर खड़े आमने-सामने | शह और मात के फेर में प्यार की बाजी छूट गयी || रिश्ते दिल से निभाना भूली दुनिया, दोष किसे दें ? ऐसे रिश्तों की गर्मी, हमें बर्फ-सी महसूस गयी ||