संदेश

सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नरेंद्र दाभोलकर के प्रति

एक नरेंद्र सुदूर अतीत में हुए थे | एक नरेंद्र तुम थे; एक नरेंद्र कोई और है | एक नरेंद्र ने हिन्दू धर्म-समाज  को उसकी जड़ निद्रा से जगाया, देशवासियों को उनका खोया आत्मविश्वास लौटाया शंखनाद किया ‘जागो फिर एक बार’ का ; एक नरेंद्र तुम थे जो धर्म के नाम पर अपनी बाजार चलाते बाबाओं की पोल खोलते रहे, हर ढोंगी बाबा को तर्क और विज्ञान के तराजू पर तोलते रहे, अंधविश्वासों के खिलाफ चीख-चीख कर बोलते रहे | एक और नरेंद्र पता नहीं क्या कर रहा है | एक नरेंद्र ने नर की सेवा को नारायण सेवा समझा धर्म का मर्म दीन-दुखियों की सेवा बताया अपने गुरु के सर्वधर्म सद्भाव के सन्देश को  जन-जन तक पहुचाया | देश के मस्तक को गौरवान्वित किया विश्व के आगे | और फिर, अपने कर्तव्यों का पालन कर महासमाधि में लीन हुए  | तुमको कुछ गुंडों ने गोलियों से छलनी कर दिया गुंडे जो भेजे गए थे उन धर्म के ठेकेदारों द्वारा जिनका बाजार मंदा पड़ता था तुम्हारी वजह से ; जो कांपते थे की अगर तुम अंधविश्वास विरोधी कानून बनवाने के अपने मिशन में कामयाब हो गये तो उनका और उनके

हिंदी दिवस को मनाये भारतीय भाषा दिवस के रूप में

हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ों के आयोजन की औपचारिकता सारे देश में जारी है | इन औपचारिकताओं से हिंदी का कितना भला होने वाला है , यह तो इतने सालों में भी जनता की समझ में नहीं आया | राजभाषा दिवस , राजभाषा विभाग , राजभाषा आयोग- इन सारे सफ़ेद हाथियों ने हिंदी को उसकी अन्य भारतीय बहन भाषाओं से दूर ला कर खड़ा कर दिया |  मेरी नजर में हिंदी भाषा अपनी सारी भारतीय बहन भाषाओं के साथ एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है | तकनीकी क्रांति के इस युग में एक संभावना तो यह है की ये सारी भाषाएँ शिक्षा और रोजगार की भाषा बन कर उभरे | वहीं एक संभावना यह है की अंग्रेजी का प्रभुत्त्व हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को हाशिये पर धकेल दे | अंग्रेजी जिस तरह से शिक्षा और रोजगार की भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं को विस्थापित कर रही है , उसे देखते हुए ऐसी आशंका होना लाजमी भी है |   भाषा की राजनीति को परे रख जिस एक कदम से हम हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को फलने-फूलने में और राष्ट्रीय एकता फ़ैलाने में मदद दे सकते हैं वो है पूरे भारत में भाषा के पठन-पाठन की त्रिभाषा प्रद्धति को लागू करना | मातृभाषा , हिंदी/भार