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समंदर का गीत

समंदर आज भी वही गीत गाता है जो उसने पहली बार गाया था जब वो अस्तित्व में बस आया था | समंदर की रेत के हर कण और समंदर का हर जड़ -चेतन मिलेंगे तुम्हें उसी आदिम गीत में मगन | फिर इसमें अचरज क्यूँ हो कि समंदर जब भी लहरों के सुर में गाता है हर सुनने वाला गीतमुग्ध रह जाता है | २१-७-२०११

जिंदगी से क्या गिला

जिंदगी से क्या गिला | जो मिला है, सो मिला || दुःख से मुरझाया था मन | आज देखो फिर खिला || राजे-महराजे गए | खंडहर बचा है अब किला || उतरा नशा अब जिंदगी का | आके तू, जरा सा पिला || मुर्दों से फिरते हैं लोग यहाँ | कुछ भी कर, तू उन्हें जिला || मैं छोड़ आऊंगा सारा जहां | तू होगी, ये दिलासा तो दिला || प्यार-रिश्तों का जहाँ | पल भर में गया है ज्यूँ बिला || तेरी आँख में आंसू नही | तेरा ह्रदय है या है शिला || ताश के पत्तों की ढेरी है दुनिया ये | तू जरा सा इसको दे हिला || गम ना कर कीचड़ का तू | बस, कुछ कमल तू दे खिला || (१९-०८-२०१०)