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बादलों के घेरे में

बादलों के घेरे में चेहरा तेरा दिखता है क्या बताऊँ और किसे गम भी जहाँ में बिकता है ख़ुशी-आशा आए-गए देखे मन में क्या अब टिकता है दूर तक पसरा अँधेरा मुझको तो अब दिखता है खुश रहो कहता सभी से दुनिया से ये ही रिश्ता है बिछुड़ना तेरा याद आये तो जख्म दिल का रिसता  है विरह की चक्की में देखो ह्रदय मेरा पिसता है प्रेम करके प्रेम ही पाए इंसां नही वो फ़रिश्ता है हमने तो देखा यारों प्रेम का गम से रिश्ता है. (कृष्ण सोबती की कहानी "बादलों के घेरे" को समर्पित)