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तुम्हे देख के ऐसा लगता है

तुम्हे देख के ऐसा लगता है इक आंसू की बूँद जो छलकी नही नयनों तक आई प लुढकी नही जीती भी रही मरती भी रही फिर आँखों-ही-आँखों में सूख चली. तुम्हे देख के ऐसा लगता है गंगा के जैसी दिखती हो तुम पावन सबको करती आई पर तुमको सबने मैला किया तुम रह गयी अपनी परछाईं. तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे  राधा खड़ी हो यमुना तट रोती भी नही, हंसती भी नही सुध-बुध बिसरा कर तन-मन की निर्मोही की बाट अगोरे है. तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे बादल का इक छोटा टुकड़ा आकाश के कोने में तन्हा छुप-छुप के रोया करता है हर ग़म को छुपाये फिरता है. तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे कोई बिन माँ का बच्चा हँसना भी भूला, रोना भी उसे भूख-प्यास का भी पता नही आकाश निहारा करता है. तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे कोई कली मुरझाई-सी खिलने से पहले लील गई जिसको इस जग़ की निठुराई कोमलता का करुणांत हुआ. तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे इक अभिमन्यु हो रण में आशा सारी नैराश्य भरी फिर भी रथ-चक्र उठाता है लड़ता जाता अंतिम पल तक

तुममे देखा, हम ही हम है

हंसी ओंठ पर आँखें नम है! हंसकर रोने का मौसम है!! सारी यादों को पछाड़ कर! सबसे ऊपर तेरा ग़म है!! खुदा सुखी है इस दुनिया से! दुखी बचे तो केवल हम है!! ताल ठोककर खड़े है हम भी! देखे दुनिया में कितना दम है!! इश्क के पागलपन का ये आलम! तुममे देखा, हम ही हम है!!

हंसी होंठ पर आँखें नम है

कैफ़ी आज़मी का एक मार्मिक शेर याद आ रहा है- "आज सोचा तो आंसू भर आये   मुद्दतों   हो गयी मुस्कराएँ." सचमुच, जीवन की आपाधापी ने आदमी के होंठों से हंसी छीन ली है. हंसी- जो जिन्दगी की सबसे मूल्यवान नेमत है, आज दुर्लभतम हो गयी है. स्वच्छ धवल मुस्कान, कहकहे, मुक्त अट्टहास  शायद ही कहीं दिखते हैं. बड़ों की दुनिया इतनी क्रूर, इतनी जालिम, इतनी बेरहम हो गयी है कि प्रकृति ने उससे हंसी छीन ली है.  हंसी  बची है अगर कहीं  तो मासूम बच्चों के पास बची है. बड़ों कि दुनिया में तो हंसी भी बाजार का उत्पाद बन गयी है. मुस्कराने के लिए भी अब विशेष ब्रांड के टूथपेस्ट , ब्रश  , क्रीम  और मोउथ  -फ्रेशनरों कि जरुरत है. हंसी हास्य  क्लबों के यहाँ मानों गिरवी रख दी गयी है. आधुनिक युग का मानव हँसे भी तो कैसे हँसे ? आज की इस तेज रफ़्तार दुनिया में उसके पास जीने की  भी फुर्सत नही रह  गयी है शायद! आदमी आदमी ना रहकर मशीन होता जा रहा है, संवेदन शून्य रोबोट  होता जा रहा है.  हंस सकता है वो जो अपनी शर्तों पर एक भरी-पूरी जिन्दगी जीता हो, जो औरों  के दुःख-दर्द मिटाने का प्रयास करता हो, जो जिन्दादिली से जिन्दगी क

त्रिवेणी--3

साथियों, त्रिवेणी की तीसरी कड़ी आप लोगों की सेवा में हाजिर है. आशा है की आप सबों को पसंद आएगी. @प्रेम में टूट कर भी प्रेम में टूट कर भी प्रेम को टूटने नहीं देते. टूट कर प्रेम किया करने वाले.       @विज्ञापन की दुनिया में मम्मी की कहना मत सुनना करना वही जो कहे टमी विज्ञापन की दुनिया में रिश्ते सारे बने डमी.       @एक त्रिवेणी के दो चेहरे 1. उसके चेहरे की उदासी मेरी आँखों ने पढ़ी और मेरे चेहरे की उदासी भांप ली उसने, और उस बच्ची के साथ मैं भी हंस पड़ा हौले-से. 2. उसके चेहरे की उदासी मेरी आँखों ने पढ़ी और मेरे चेहरे की उदासी भांप ली उसने, हँस के अपनी उदासियाँ साझा कर ली हमने.       @आँखें खुली हों तुम जो कहते हो मेरे हमसफ़र बनोगे तुम तुमको क्या खबर कि किस राह मैं चलूँगा? चाहत पे भरोसा करो पर आँखें खुली हों.   @ मेरी मज़बूरी भी, मजबूती भी तुम्हारी पीड़ा से छलकी रहती है आँखें मेरी दिल भरा सा रहता है, होंठों पे दुआ होती है क्या कहूं, तुम मेरी मज़बूरी भी हो, मजबूती भी.       @ जिन्दगी से जी अभी भरा नही रातें कितनी गुजारी जाग

ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में

एक ही चर्चा छेड़ा करते हैं अपने हर गाने में ! दर्द मिला मुझे ज्यादा तेरे आने में या जाने में !! एक ही तेरा ग़म था जिसको कहते रहे अफ़सानों में! इक अपना जो बिछड़ा उसको ढूंढा हर बेगाने में !! ग़म-ही-ग़म पाकर अब रब से पूछा करते हरदम हम! ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में !! चैन से हम मर भी ना पाए, ओ संगदिल, तू ये तो बता! काहे इतनी देर लगा दी, जालिम तूने आने में!! खुद को पाना हो या खुदा को, इश्क की आग में जलके देख! शमा के इश्क़ में जलते-जलते यही कहा परवाने ने!! दिल की रस्साकस्सी में ना मालूम था ऐसा होगा! दिल की रस्सी ही टूट गयी इक-दूजे को आजमाने में!! तुमको खोने की चिंता में जीते जी कई बार मरा! पर खो डाला तुझको मैंने शायद तुझको पाने में!!