ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में
एक ही चर्चा छेड़ा करते हैं अपने हर गाने में !
दर्द मिला मुझे ज्यादा तेरे आने में या जाने में !!
एक ही तेरा ग़म था जिसको कहते रहे अफ़सानों में!
इक अपना जो बिछड़ा उसको ढूंढा हर बेगाने में !!
ग़म-ही-ग़म पाकर अब रब से पूछा करते हरदम हम!
ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में !!
चैन से हम मर भी ना पाए, ओ संगदिल, तू ये तो बता!
काहे इतनी देर लगा दी, जालिम तूने आने में!!
खुद को पाना हो या खुदा को, इश्क की आग में जलके देख!
शमा के इश्क़ में जलते-जलते यही कहा परवाने ने!!
दिल की रस्साकस्सी में ना मालूम था ऐसा होगा!
दिल की रस्सी ही टूट गयी इक-दूजे को आजमाने में!!
तुमको खोने की चिंता में जीते जी कई बार मरा!
पर खो डाला तुझको मैंने शायद तुझको पाने में!!
दर्द मिला मुझे ज्यादा तेरे आने में या जाने में !!
एक ही तेरा ग़म था जिसको कहते रहे अफ़सानों में!
इक अपना जो बिछड़ा उसको ढूंढा हर बेगाने में !!
ग़म-ही-ग़म पाकर अब रब से पूछा करते हरदम हम!
ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में !!
चैन से हम मर भी ना पाए, ओ संगदिल, तू ये तो बता!
काहे इतनी देर लगा दी, जालिम तूने आने में!!
खुद को पाना हो या खुदा को, इश्क की आग में जलके देख!
शमा के इश्क़ में जलते-जलते यही कहा परवाने ने!!
दिल की रस्साकस्सी में ना मालूम था ऐसा होगा!
दिल की रस्सी ही टूट गयी इक-दूजे को आजमाने में!!
तुमको खोने की चिंता में जीते जी कई बार मरा!
पर खो डाला तुझको मैंने शायद तुझको पाने में!!
टिप्पणियाँ
http://athaah.blogspot.com/
अब तो मसूरी के दिन गिन रहा हूँ.......वहीँ लम्बी परिचर्चाएं होंगी......
फिलहाल तो आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ.....
एक ही चर्चा छेड़ा करते हैं अपने हर गाने में !
दर्द मिला मुझे ज्यादा तेरे आने में या जाने में !!
और
खुद को पाना हो या खुदा को, इश्क की आग में जलके देख!
शमा के इश्क़ में जलते-जलते यही कहा परवाने ने!!
आहा रवायती ग़ज़ल की तर्ज़ के शेर.......बहुत अच्छे !
ग़म-ही-ग़म पाकर अब रब से पूछा करते हरदम हम!
ऐसी भी क्या कमी दिखी, मौला इस दीवाने में !!
बहुत सही .........!
दिल की रस्साकस्सी में ना मालूम था ऐसा होगा!
दिल की रस्सी ही टूट गयी इक-दूजे को आजमाने में!!
वाह ......!