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आत्ममुग्धता

आत्ममुग्धता दबे पाँव आखेट करती है | बड़े- बड़े आखेटक, चूर अपनी कीर्ति गाथाओं में, अनभिज्ञ इस बात से कि ; उनका भी हो सकता है आखेट, बन जाते हैं आखेट आत्ममुग्धता का | जारी रखते हैं वो आखेट औरों का, अपना हाल अनजाने | आत्ममुग्धता फंदे बिछाती है चुपचाप | अहं के नुकीले बरछों से भरे गड्ढ़े , अति यशाकांक्षा के पांवों के फंदे, अतिशय भोग-विलास के पिंजरे, सर्वज्ञता की गले की फांस, इनसे बचना विरले ही होता है संभव | आत्ममुग्धता नहीं सजाती अपने शिकार की ट्रॉफी | मगर शिकार के चेहरे, बोली, हाव-भाव, बर्ताव से झलकता है उसका शिकार होना; अंधेर नगरी के मायालोक में रहता है, आत्ममुग्ध चौपट राजा , रेबड़ी बांटता है अपने में और पूछता है परायों से स्वाद | आत्ममुग्ध लोगों से आतंकित रहती है दुनिया | इतिहास गवाह है- आत्ममुग्ध लोगों ने सबसे ज्यादा की है मानवता की क्षति; कभी इतिहास बदलने के नाम पर, तो कभी धर्म, देश, प्रकृति और मानवता को बचाने के नाम पर; जबकि जरुरी था उनका अपनेआप को आत्ममुग्धता से बचाना |