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बीती हुई यादों से नए साल का स्वागत-स्मृतियाँ 2009

         स्मृतियाँ  -                     ओस की बूंदों से भी स्निग्ध मोतियों से भी ज्यादा चमकीली शहद से भी ज्यादा मीठी आंसुओं  से भी ज्यादा नमकीन नवपल्लवों  से भी ज्यादा रक्तिम सुनहरी सुबह से भी ज्यादा सुहानी जीवन क्या है इन स्मृतियाँ के समुच्चय के सिवा नववर्ष में इन सुन्दर स्मृतियाँ का साथ रहे और यह नववर्ष कुछ इस तरह बीते की हर खूबसूरत स्वप्न सच हो उठे तन-मन-जीवन में प्रेम की मिठास घुल जाये स्मृतियाँ और भी सुखद, और सुहानी और सुनहरी हो उठे.

स्वामी प्रेम डूबे-युधिष्ठिर संवाद

यक्ष-युधिष्ठिर संवाद की समाप्ति पर युधिष्ठिर ने यक्ष से अपनी एक व्यक्तिगत जिज्ञासा रखी- "हे महाज्ञानी यक्ष, मानव चिरकाल से जानता आया है कि प्रेम सारे दुखों के मूल में है, सारे साहित्य का सार यही है कि प्रेम का वियोग पक्ष ही प्रबल है, फिर भी सब-कुछ जानते हुए भी मानव इस प्रेम कि दलदल में डूबने को क्यूँ आतुर हो उठता है? यक्ष  ने पहले अपनी दाढ़ी खुजाई, फिर सर पर जो थोड़े-मोड़े बाल बचे थे उनको खुजाया और फिर एकाएक उनको सारे बदन में खुजली होने लगी. पूरे जीवन में इतना खुजाने वाला सवाल उन्हें आजतक नही मिला था. अंत में थक-हार कर अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए यक्ष ने कहा- "हे धर्मराज युधिष्ठिर, प्रेम के सन्दर्भ में मेरा ज्ञान बड़ा ही सीमित है. मानव प्रेम के जिस भावनात्मक पहलू को लेकर आंसुओं का समंदर बहा देते है, उससे हमारा पाला नही पड़ता. हम यक्ष गण तो स्वछंद  विहार और भोग-विलास में विश्वास रखते है. हमें तो कभी-कभी यह देख कर घोर आश्चर्य होता है कि मानव एक नारी के पीछे इस तरह उन्मत्त और पागल कैसे हो उठता है,जबकि भूलोक पर नारियों की कोई कमी नहीं. मेरी व्यक्तिगत राय में इस तरह का प्रेम ब

गुनगुनाते हुए तुमको इक ग़ज़ल की तरह

गुनगुनाते हुए तुमको इक ग़ज़ल की तरह मैंने पाया है तुम्हे ख्वाबों की खुशबू की तरह जब भी मैं घिरा हूँ तन्हाई के अंधेरों में तेरी यादों को मैंने पाया है जुगनू की तरह डूबते-उतराते तेरी आँखों में तेरी आँखें दिखी है मुझको सागर की तरह तुम जो हंसती हो तो मेरा दिल भी झूम उठता है मैंने पाया है तेरी हंसी को फूलों की तरह तेरे चेहरे को देखते नही भरता मन है तेरा चेहरा है अँधेरे में रौशनी की तरह तू-ही-तू है हर तरफ मेरी जिन्दगी में अब तो तेरा होना है मेरे होने की तरह.

हाय-हाय री निंदिया

नींद भी इक नशा है जिसका असर कुछ कम नही नींद में हो तो ज़माने भर का कोई गम नही नींद की खातिर सहे क्या-क्या सितम हम ने नही फिर भी दामन नींद का छोड़ा कभी हम ने नही किनारे पर हाथ थामे और छोड़ दे मझधार में लोग ऐसे बहुत इस दुनिया में उनमे हम नही नींद की खातिर सही है जिल्लतें- दुश्वारियां फिर भी यारी नींद से अपनी हुई कुछ कम नहीं जिन्दगी की जरुरत भी, मौत की आहट भी नींद नींद क्या है, क्या कहूं,इसे जानना मुमकिन नही नींद है तो ख्वाब है और ख्वाबों  से है जिन्दगी नींद ना हो तो किसी की जिन्दगी रौशन नही.

तन्हाई

जब कभी तन्हा-तन्हा होता हूँ आंसू आते नहीं, पर रोता हूँ सोचता हूँ कि यादों से जरा दूर रहूँ फिर भी यादों के संग ही होता हूँ याद आता है की पैरों में है जंजीर पड़ी जब कभी उड़ने को मैं होता हूँ रट रहा राम-राम, मरम जानता ही नहीं प्रेम की रट लगाये मैं भी एक तोता हूँ. जाने क्या गम है, दिल मेरा नम है दुनिया क्या जाने, हँसता हूँ न रोता हूँ भीड़ में खुद को ढूंढे फिरता हूँ वहीँ तनहाइयों में खुद को मैं खोता हूँ.

नए साल के भारत से

नए साल के भारत से है  उम्मीदे नयी-नयी झारखण्ड का भ्रष्ट नाच ना हो फिर से कभी फिर से किसी रुचिका को ना जान गवानी पड़े और ना कोई अपराधी पा जाये सत्ता की कुर्सी रीढविहीन प्रजातंत्र को उसकी बैकबोन मिल जाये नेताओं-अफसरों में थोड़ी नैतिकता आ जाये बेचारी निरीह जनता की निरीहता गुम जाये देश को प्रेरित कर सकने वाले कुछ नेता सामने आये आतंकवाद और नक्सलवाद का तांडव नृत्य थमे भाषा और क्षेत्रीयता के झगडे अब तो जरा कमे कूटनीति में भारत फिर से चाले अच्छी चले दुनिया के मसलो में भारत की तूती बोले    ग्राफ गरीबी का तेजी से नीचे आता जाये हर हाथ को काम और हर मुंह दाना पाए शिक्षा का स्तर तेजी से ऊपर चढ़ता जाये भारत और इंडिया की खाई पाटी जाये . दुआ यही है की भारत का ना आशावाद मरे इतने सालों से आशा पर जिन्दा हैं कितने मुर्दे.

बलात्कार के विरुद्ध

साथियों, इस साल के आखिरी महीनों ने हमारे देश की तथाकथित नैतिकता की पूरी तरह पोल खोल कर रख दी है. आंध्र के राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी हाल में मीडिया में छाया  सेक्स स्कैंडल हो या फिर हरयाणा में आज से दो दशकों पहले इक किशोरी का शोषण कर के उसे आत्महत्या पर मजबूर कर देने के आरोप में फंसे  हरयाणा के पूर्व पुलिस प्रमुख राठौर का मामला हो,साफ दीखता है कि बाड़ ने ही खेत को खाना शुरू कर दिया है. बच्चियों,किशोरियों और महिलाओं के शोषण का यह जो चक्रव्यूह फैला हुआ है उसके खिलाफ हर एक को उठ खड़े होने कि जरुरत है. देश में जो यह बलात्कारी मानसिकता फैलती जा रही है, उससे हर महिला आज अपने को असुरक्षित महसूस कर रही है.  आपके विचारों का इंतजार रहेगा कि इस परिस्थिति में हम लोग क्या बदलाव ला सकते है. मुझे शर्म है की मैं एक ऐसे समाज का हिस्सा हूँ जिसमे कोई भी लड़की खुद  को सुरक्षित नही महसूसती घर के बाहर की बेशर्म दुनिया में ही नही नैतिकता के पर्दों से ढके घर में भी. न जाने कैसा कुंठित नैतिक समाज है हमारा जिसमे साठ साला व्यक्ति की काम वासना भड़क उठती है छः साल की अकेली लड़की को देखकर. जिस समाज में हर

निठारी

बच्चों! किसी पर भरोसा न करना सीखना होगा तुम्हे, अगर तुम चाहते हो अपनी रक्षा. भेडिये हर तरफ है इंसानों के भेष में. सीखो हर बड़े पर अविश्वास करना, पता नही उनमे कौन हो शैतान, खूनी, बलात्कारी, नरपिशाच. बच्चों! अब बड़े बचपन से ही तुम्हे छोड़ना होगा अपना बचपना, अपनी मासूमियत, अपना भोलापन. बड़ों की इस खतरनाक दुनिया में जीने के लिए निहायत जरुरी है बचपन से ही तुम्हारा बड़ा होना.