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तुलसीदास की विनय पत्रिका, गीतावली एवं कवितावली

तुलसी साहित्य में रूचि रखनेवालों के लिए  तुलसीदास जी की विनय पत्रिका, गीतावली और कवितावली को पढ़ना एक अलग आनंद देता है।  लोकभारती प्रकाशन से अत्यंत ही अल्प मूल्य में  प्रकाशित तुलसी साहित्य के सुधी अध्येता योगेंद्र प्रताप सिंह जी की विनय पत्रिका पर लिखी सुन्दर टीका और इसी प्रकाशन से प्रकाशित गीतावली और कवितावली की सुधाकर पाण्डेय द्वारा लिखी टीका सभी पाठकों के लिए तुलसी साहित्य में डुबकी लगा कर कुछ ज्ञान, कुछ कर्म, कुछ श्रद्धा -विह्वल भक्ति  तो कुछ वैराग्य  के मोती ढूंढ लाने का अवसर देती है।   योगेंद्र प्रताप सिंह जी की विनय पत्रिका पर लिखी टीका में अर्थ की हर छटा को बड़े प्रेम और सुगमता से समझाया गया है।  कुछ सुंदर उदाहरण देखें- "मोह दशमौलि तद्भ्रात अहँकार पाकारिजित काम विश्रामहारी।  लोभ अतिकाय मत्सर महोदर दुष्ट क्रोध पापिष्ठ बिबुद्धांतकारी।।  द्वेष दुर्मुख दंभ खर अकंपन कपट दर्प मनुजाद मद शूलपानी।  अमितबल परम दुर्जय निशाचर निकर सहित षडवर्ग गो यातुधानी।। .... कैवल्य साधन अखिल भालु मरकट विपुल ज्ञान सुग्रीवकृत जलिधिसेतु।  प्रबल वैराग्य दारुण प्रभंजन तनय विषय वन भवनमिव धूमकेतु।। दुष्ट द

नववर्ष 2023 में सफर चलता रहे यूं ही

  सफर चलता रहे यूं ही । दिल मचलता रहे यूं ही ।। मुकम्मल होने की चाहत रहे। अधूरापन खलता रहे यूं ही ।। हुस्न तो नूर है इलाही का । आशिकों को  छलता रहे यूं ही ।। तूफानों में बीच समंदर खेवे नैया। न कोई किनारे हाथ मलता रहे यूं ही ।। सिकंदर को भी जहां से खाली हाथ जाना है । चांद सितारों का अहं गलता रहे यूं ही ।। जलेगा राख होगा फिर भी उससे आएगी खुशबू। दिल तो दिल है, जले, जलता रहे यूं ही ।। तीर लोहे का हो या सरकंडे का । तीर का मोल है, निशाने हलता रहे यूं ही ।। दोस्तों पे प्यार हो, दुश्मनों पे वार हो । दुश्मन की छाती पे मूंग दलता रहे यूं ही।। दोस्ती जज्बा है वो जिसका कोई जोड़ नहीं। दोस्तों का बिछड़ना टलता रहे यूं ही । लाख नाउम्मीदी हो, अंधेरे हो सीने में आस पलता रहे यूं ही डूबते हुए भी छठ में जिसे पूजते हैं नई सुबह आने को,सूरज ढलता रहे यूं ही ।। दीप से दीप जले, हाशिए भी रौशन हो । अच्छा काम फलता रहे यूं ही ।। नववर्ष 2023 की हार्दिक शुभमंगलकामनाएं।