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त्रिवेणी - जख्म और पेड़

जख्म और पेड़ हरे ही अच्छे | सूख जाने पे मर जाते हैं दोनों || सींचते रहिये इन्हें आंसू और पानी से | --केशव--

नरेंद्र दाभोलकर के प्रति

एक नरेंद्र सुदूर अतीत में हुए थे | एक नरेंद्र तुम थे; एक नरेंद्र कोई और है | एक नरेंद्र ने हिन्दू धर्म-समाज  को उसकी जड़ निद्रा से जगाया, देशवासियों को उनका खोया आत्मविश्वास लौटाया शंखनाद किया ‘जागो फिर एक बार’ का ; एक नरेंद्र तुम थे जो धर्म के नाम पर अपनी बाजार चलाते बाबाओं की पोल खोलते रहे, हर ढोंगी बाबा को तर्क और विज्ञान के तराजू पर तोलते रहे, अंधविश्वासों के खिलाफ चीख-चीख कर बोलते रहे | एक और नरेंद्र पता नहीं क्या कर रहा है | एक नरेंद्र ने नर की सेवा को नारायण सेवा समझा धर्म का मर्म दीन-दुखियों की सेवा बताया अपने गुरु के सर्वधर्म सद्भाव के सन्देश को  जन-जन तक पहुचाया | देश के मस्तक को गौरवान्वित किया विश्व के आगे | और फिर, अपने कर्तव्यों का पालन कर महासमाधि में लीन हुए  | तुमको कुछ गुंडों ने गोलियों से छलनी कर दिया गुंडे जो भेजे गए थे उन धर्म के ठेकेदारों द्वारा जिनका बाजार मंदा पड़ता था तुम्हारी वजह से ; जो कांपते थे की अगर तुम अंधविश्वास विरोधी कानून बनवाने के अपने मिशन में कामयाब हो गये तो उनका और उनके

हिंदी दिवस को मनाये भारतीय भाषा दिवस के रूप में

हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ों के आयोजन की औपचारिकता सारे देश में जारी है | इन औपचारिकताओं से हिंदी का कितना भला होने वाला है , यह तो इतने सालों में भी जनता की समझ में नहीं आया | राजभाषा दिवस , राजभाषा विभाग , राजभाषा आयोग- इन सारे सफ़ेद हाथियों ने हिंदी को उसकी अन्य भारतीय बहन भाषाओं से दूर ला कर खड़ा कर दिया |  मेरी नजर में हिंदी भाषा अपनी सारी भारतीय बहन भाषाओं के साथ एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है | तकनीकी क्रांति के इस युग में एक संभावना तो यह है की ये सारी भाषाएँ शिक्षा और रोजगार की भाषा बन कर उभरे | वहीं एक संभावना यह है की अंग्रेजी का प्रभुत्त्व हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को हाशिये पर धकेल दे | अंग्रेजी जिस तरह से शिक्षा और रोजगार की भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं को विस्थापित कर रही है , उसे देखते हुए ऐसी आशंका होना लाजमी भी है |   भाषा की राजनीति को परे रख जिस एक कदम से हम हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को फलने-फूलने में और राष्ट्रीय एकता फ़ैलाने में मदद दे सकते हैं वो है पूरे भारत में भाषा के पठन-पाठन की त्रिभाषा प्रद्धति को लागू करना | मातृभाषा , हिंदी/भार

भ्रष्टाचार को भारत से भगाने के लिए फिर से एक स्वाधीनता संग्राम की जरुरत है?

  भ्रष्टाचार को भारत से भगाने के लिए फिर से एक स्वाधीनता संग्राम की जरुरत है? शायद किसी ने सच ही कहा है कि भ्रष्टाचार भारत की जीन में है. (हाल में नॉएडा में SDM दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किये जाने के राज्य सरकार के फैसले ने भारत में ईमानदारी और भ्रष्टाचार पर इक नयी बहस छेड़ दी है | खनन माफिया के खिलाफ कड़ी कारर्वाई करनेवाली इस SDM को इक दुसरे मामले में रातो-रात निलंबित कर दिया गया | सारे ईमानदार लोग सदमे और आक्रोश में हैं |  एक तरह की असहायता माहौल में व्याप्त है. रीढ़ की हड्डी खो सी गयी है, ऐसे में लगता है कि ईमानदार होना कोई गुनाह है क्या? इसी परिदृश्य में भारत में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मैं केशवेन्द्र अपने विचार आप लोगों से बाँट रहा हूँ | आपके विचारों और प्रतिक्रियों का इंतजार रहेगा |) भारत को अंग्रेजों ने जितना न लूटा, उससे ज्यादा इसी देश के भ्रष्टाचारियों ने लूटा. यही वो महान देश है जहाँ  ट्रकों के पीछे कई बार हमें देखने को मिलता है- “सौ में नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा देश महान |” और, उसी ट्रक को कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई सरकारी मुलाजिम रोककर वसूली करता है. आखिर

क्यूँ कहते हो कि बेटी परायी है

यह कविता जितनी मेरी नन्हीं बिटिया के लिए है उतनी ही दुनिया की हर बेटी के लिए है | नीलेश रघुवंशी जी की कविता की इक पंक्ति याद आ रही है कि –“इस दुनिया को तोड़-मरोड़कर बनानी चाहिये इक नयी दुनिया/ बेटी जिसमे इतनी परायी न हो”| वाकई, बेटियां अनमोल होती है | हमें इस दुनिया को उनके लिए सुरक्षित, सुंदर और अपनापन भरी बनाने में अपना हरसंभव योगदान देना होगा | मेरी नन्हीं परी जब से घर में आयी है | मेरे ख्वाबों-ख्यालों पे वही छायी है || ख़ुशी के आंसुओं से मेरी आँख छलछलाई है | नींद में सोयी हुई जब वो मुस्करायी है || गोद में बिटिया मेरी पहले-पहल जब आयी | मेरी ख़ुशी तितली-सी फड़फड़ायी है || उसकी किलकारियों-से खिल उठा घर सारा | उसके रोने में भी मानों बजती शहनाई है || बेटियां तो खुदा की नेमत है | फिर क्यूँ कहते हो कि बेटी   परायी है || ---केशवेन्द्र कुमार---

द्रौपदियों के चीरहरण के देश में

द्रौपदियों के चीरहरण के देश में | दुर्योधन-दु:शासन है हर वेश में | एक की रक्षा कर लौटे कि दूजी पुकार | कृष्ण बेचारे पड़े हुए है क्लेश में | सत्ता भीष्म पितामह- सी लाचार पड़ी है | या फिर लुत्फ़ उठाती है, लाचारी के भेष में | द्रौपदी, कब तक कृष्ण-कृष्ण गुहराओगी | आ जाओ तुम अब काली  के वेश में | रक्तबीज की भांति हैं ये कामुक पिशाच | अट्टहास करो इनके वध के शेष में | ---केश्वेंद्र --- ५-५-२०१३

हर चुप्पी में इक चीख छुपी होती है

हर चुप्पी में इक चीख छुपी होती है| हर सन्नाटे में इक गूंज दबी होती है |   इन चीखों को, इन गूंजों को बिरले कोई ही सुनता है | कुछ आवाजों की दस्तक बस, दिल के दरवाजे होती है|   जो सुनता है और गुनता है- बैचैनी में सर धुनता है | जिसको सुनना था-वो बहरा, उसके कानों पर है पहरा |   फिर कोई भगतसिंह आता है, संग अपने धमाके लाता है | बहरे कानों की यही दवा, ये सीख हमें दे जाता है |   इन चीखों को, इन गूंजों को, अपने दिल में घर करने दे | सत्ता से जनता नहीं डरे, सत्ता को जनता से डरने दे |  

एक बलात्कारी दिन

    एक बलात्कारी दिन, आया, आके बीत गया | रोया ख़बरें सुन-सुन कर, मन मानों रीत गया ||   बच्चियों तक को न बख्शा इन वहशी दरिंदों ने | खुदा शायद हार गया, शैतान जीत गया ||   छीन ली कुछ मासूमों की मुस्कान सदा के लिये | खिलखिलाहटें थमीं और जीवन-संगीत गया ||   सत्ता के कानों पे जूं तक नहीं रेंगी | औरत का कोई नहीं, ऐसा परतीत गया ||   जनता का गुस्सा भी क्षणिक-सा उबाल है | नारे लगे, कैंडल जले और लावा रीत गया ||   ---केशवेन्द्र---