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खुदा हाफिज़ दामिनी

दरिन्दे  भरे पड़े हैं दुनिया में  संभल के चलना माँओं -बहनों-बेटियों  खुदा हाफिज़. सरकार से ना रखो कोई उम्मीद  तो ही अच्छा. सरकार को वैसे भी कई जरूरी काम है. सरकार को इज़्ज़त से क्या, बस वोट चाहिए. न्याय की देवी की आंखों पे भी पट्टी है बँधी. और उसके यमदूतों से बचकर ही रहो, इसी में खुदा की रहमत है. हाँ अगर चिड़िया के खेत चुग जाने                      के बाद पछताने का और    वक्त और पैसा लुटाने का इरादा हो तो न्याय की दहलीज़ पे स्वागत है तुम्हारा.         पुलिस को देख् के झूठे dhandhas ना पालना मन में. वो तो होते हुए भी ना होने के बराबर है. आजकल तालियाँ बड़ी अच्छी वो बजाते हैं, और, नेताजी के जूते साफ करते पाये जाते हैं. प्रशासकों की तरफ़ भी उम्मीद से  मत देख बैठना बेचारे कितने सालों से रीढ़ की हड्डी तलाशे फिरते हैं. सन् पछत्तर में नसबंदी के बहाने  इनकी रीढ़ की हड्डी ही गायब कर दी, तबसे ये सिर्फ़ रेंगा करते हैं. अपने वज़ूद की हिफाज़त में ही पस्तेदम इन बेचारो से तुम्हारी हिफाज़त की उम्मीद नाउम्मीदी है. नेताओं

धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ

२०-८-२०१२ धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ | हर कोई फिट कर रहा अपनी- अपनी गोटियाँ || व्यवस्था का बूढ़ा गिद्ध है हरपल चौकन्ना | जनता जिसे दिखती है बोटियाँ-ही-बोटियाँ || अपने ही देश में, लोग बेगाने हुए | दर-दर भटक रहे बनके घुमंतू भोटियाँ || दल-दल के दांत है दिखाने के और ही | मगर हमाम में सब, यार हैं   लँगोटियाँ || ---केशवेंद्र ---

शेर सिंह का लोकतंत्र

१.       शेर सिंह का लोकतंत्र जंगल के जानवरों की सभा में एक मरियल से चूहे ने जिसने शेर को जितने के लिए मतदान किया था, जंगल के राजा शेर से बड़ी हिम्मत उठा कर एक सवाल पूछने की जुर्रत की – “महाराज, आपने वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद आप हम गरीब छोटे जानवरों का और हमारे विकास का पूरा ध्यान रखेंगे मगर एक साल में भी ऐसा कुछ हुआ नहीं.” शेर सिंह जो चुनाव के वक्त इतने विनम्र थे कि हर एक चूहे-खरगोश –हिरन तक के घर जा वोट माँगा था, दहाड़े- “गिरफ्तार करो कमबख्त को, ये सरकार गिराने की साजिश करने वालों में शामिल है. ऐसे लोगों को मैं अच्छी तरह जनता हूँ, ये लोग समाज और लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है.” चूहा गिरफ्तार कर लिया गया और आजकल वो माओवादी होने के आरोप में जेल में सड़ रहा है.

ऐसा करे राम ना

वैसा ही है समंदर को शब्दों में बांधना | जैसा कि है लहरों को हाथों में थामना || हाथों में हरदम हाथ तेरा बना रहे | इसके सिवा मन में नहीं और कोई कामना || ख्याल से ही यार के मन सिहर-सिहर उठता है| क्या होगा रब जाने, जब होगा सामना || मीलों तनहा रस्ते चल, यार की मंजिल मिली | यार से जुदाई हो कभी, ऐसा करे राम ना ||

कब तक कोख में मारी जाएँगी बेटियाँ

आमिर खान के टीवी सीरियल सत्यमेव जयते ने वाकई अपने पहले ही एपिसोड से जनमानस में हलचल मचाना शुरू कर दिया है. भ्रूण हत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को काफी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ समाज के सामने लाकर वो समाज को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. हलचल बता रही है कि समाज को भी अपने चेहरे पर इतना बड़ा दाग-धब्बा पसंद नहीं आ रहा है और इस प्रोग्राम के बाद प्रशासन और जनता में काफी जागरूकता भी आयी है. राजस्थान में स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा भ्रूण हत्या में डॉक्टरों की भूमिका को उजागर करनेवाले पत्रकारों की कहानी देखकर लगा कि वाकई समाज को बदलने की जद्दोजहद में लगे लोगों को कम ठोकरें नहीं कहानी पड़ती. मगर संतोष इस बात का है कि देर से ही सही बदलाव आने की शुरुआत हो रही है. कन्या भ्रूण हत्या में सबसे विवश होती है वह माँ जिसे उसकी ही बेटी को मारने में हामी भरने को मजबूर कर दिया जाता है. जरुरत है कि वो इतनी मजबूत बन सके कि अपने बेटी को मारने की साजिश में लगे घर, परिवार और समाज के सामने बुलंदी से अपनी बेटी की ढाल बन कर खड़ी हो सके. वर्ष २००४ की फरवरी में इसी मुद्दे पर एक कविता लिखी थी जिसमे एक कन्या भ्रूण अपनी माँ

नरेंद्र की शहादत पर

  मध्य प्रदेश में २००९ बैच के जांबाज ईमानदार IPS ऑफिसर नरेंद्र की हत्या के बाद बिहार में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने पर मार डाले गए सत्येन्द्र डूबे और उन जैसे सारे ईमानदार लोगों की शहादत याद आ रही है. इन सारे शहीदों की वीरता को नमन और एक पुरानी कविता से श्रद्धांजलि   ईमान मर नहीं सकता   आज के इस भयानक दौर में, जहाँ ईमान की हर जुबान पर खामोशी का ताला जडा है. चाभी एक दुनाली में भरी सामने धरी है , फ़िर भी मैं कायर न बनूँगा अपनी आत्मा की निगाह में फ़िर भी मैं, रत्ती भर न हिचकूंगा चलने में ईमान कि इस राह पे। मैं अपनी जुबान खोलूँगा मैं भेद सारे खोलूँगा- (बेईमानों- भ्रष्टाचारियों की काली करतूतों के ) मैं चीख-चीख कर दुनिया भर में बोलूँगा- ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। मैं जानता हूँ कि परिणाम क्या होगा- मेरी जुबान पर पड़ा खामोशी का ताला बदल जाएगा फांसी के फंदे में और फंदा कसता जायेगा- भिंच जायेंगे जबड़े और मुट्ठियाँ आँखें निष्फल क्रोध से उबलती बाहर आ जाएँगी प्राण फसेंगे, लोग हसेंगे पर संकल्प और कसेंगे. देह मर जायेगा मगर आत्मा चीखेगी, अनवरत, अविराम- '

उसने देखा इस नज़र से

उसने देखा इस नज़र से | मैं गिरा अपनी नज़र से || अधर में बड़ी देर डोला | टूटा पत्ता जब शज़र से || रात कितनी बाकी है अभी | पूछे सन्नाटा गज़र से || साथ रखना दुआएँ माँ की | बचाएंगी बुरी नज़र से || नज़र में ना चुभो किसीकी | सबको बरतो इस नज़र से || नज़र न आए यार मेरा | मगर नहीं है दूर नज़र से || आईना मैं हूँ तुम्हारा | मुझको देखो इस नज़र से || दिल में अंक गई नजरे उसकी | उसने देखा इस नज़र से ||

नव वर्ष २०१२

वर्ष है नया मगर हम है नए क्या| हम नए नहीं हैं गर तो फर्क क्या हुआ || उम्मीद है कि इस नए वर्ष में हम भी नूतन बनने की कोशिशों में लगे रहेंगे .. हम जो हैं, उससे आगे 'जो होना चाहते हैं' की और अपने पग धरते रहेंगे. नए वर्ष में आपकी आँखों को सपनों की सौगात मिले, आपके सपनों को पंख मिले और आपकी परवाज को देख आसमां भी इन्द्रधनुषी मुस्कान से भर उठे, इसी दुआ के साथ आप सबों को और आपके सारे सपनों को , आपके सारे अपनों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ |