दुनिया को कह दो की गाँधी को अंग्रेजी नहीं आती
आजादी की पूर्वसंध्या में एक महान मनीषी आत्मा ने दुनिया के बहाने अपने देशवासियों को पैगाम दिया था भाषिक गुलामी की केंचुले उतार फेंकने को उनके देशवासी गुलामी की केंचुल निकालने की आधी-अधूरी कोशिश में, आज तक अंग्रेजी की खूंटी से उल्टे टंगे हैं. मामला क्या है? केंचुल है कि उतरती ही नही या कि केंचुल के अन्दर का प्राणी केंचुल से बाहर आना ही नहीं चाहता. गाँधी के लिए मातृभाषा माँ-जैसी थी कहा था गाँधी ने की माँ जैसी भी हो बच्चे को जीवनदायी अमृत माँ से ही मिलता है पर हमारी बोतलबंद दूध पर पली पीढी को माँ के दूध के स्वाद और मातृभाषा की मिठास का क्या पता बोतलबंद दूध की तरह बोतलबंद भाषा भी समा चुकी है हमारी नस-नस में (क्षीण करती हुई हमारी जीवनीशक्ति को) सुना है की दो सगे भाइयों को विदेशी भाषा में बाते करते सुन मर्माहत हुए थे गाँधी कहा था की जिस देश के लोग इस कदर मानसिक गुलाम हों उस देश को आजादी मिलकर भी क्या खाक मिलेगी? और आज हमारे आजाद भारतवर्ष में ये आलम है की माँ-बाप अपने छोटे बच्चों के सामने अपनी भाषा में नही अंग्रेजी में बातें करते हैं ताकि अनायास ही सीख सके बच्चा फर्र-फर्र अंग्रेजी अपनी भाषा मे...