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बीती हुई यादों से नए साल का स्वागत-स्मृतियाँ 2009

         स्मृतियाँ  -                     ओस की बूंदों से भी स्निग्ध मोतियों से भी ज्यादा चमकीली शहद से भी ज्यादा मीठी आंसुओं  से भी ज्यादा नमकीन नवपल्लवों  से भी ज्यादा रक्तिम सुनहरी सुबह से भी ज्यादा सुहानी जीवन क्या है इन स्मृतियाँ के समुच्चय के सिवा नववर्ष में इन सुन्दर स्मृतियाँ का साथ रहे और यह नववर्ष कुछ इस तरह बीते की हर खूबसूरत स्वप्न सच हो उठे तन-मन-जीवन में प्रेम की मिठास घुल जाये स्मृतियाँ और भी सुखद, और सुहानी और सुनहरी हो उठे.

स्वामी प्रेम डूबे-युधिष्ठिर संवाद

यक्ष-युधिष्ठिर संवाद की समाप्ति पर युधिष्ठिर ने यक्ष से अपनी एक व्यक्तिगत जिज्ञासा रखी- "हे महाज्ञानी यक्ष, मानव चिरकाल से जानता आया है कि प्रेम सारे दुखों के मूल में है, सारे साहित्य का सार यही है कि प्रेम का वियोग पक्ष ही प्रबल है, फिर भी सब-कुछ जानते हुए भी मानव इस प्रेम कि दलदल में डूबने को क्यूँ आतुर हो उठता है? यक्ष  ने पहले अपनी दाढ़ी खुजाई, फिर सर पर जो थोड़े-मोड़े बाल बचे थे उनको खुजाया और फिर एकाएक उनको सारे बदन में खुजली होने लगी. पूरे जीवन में इतना खुजाने वाला सवाल उन्हें आजतक नही मिला था. अंत में थक-हार कर अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए यक्ष ने कहा- "हे धर्मराज युधिष्ठिर, प्रेम के सन्दर्भ में मेरा ज्ञान बड़ा ही सीमित है. मानव प्रेम के जिस भावनात्मक पहलू को लेकर आंसुओं का समंदर बहा देते है, उससे हमारा पाला नही पड़ता. हम यक्ष गण तो स्वछंद  विहार और भोग-विलास में विश्वास रखते है. हमें तो कभी-कभी यह देख कर घोर आश्चर्य होता है कि मानव एक नारी के पीछे इस तरह उन्मत्त और पागल कैसे हो उठता है,जबकि भूलोक पर नारियों की कोई कमी नहीं. मेरी व्यक्तिगत राय में इस तरह का प्रेम ब

गुनगुनाते हुए तुमको इक ग़ज़ल की तरह

गुनगुनाते हुए तुमको इक ग़ज़ल की तरह मैंने पाया है तुम्हे ख्वाबों की खुशबू की तरह जब भी मैं घिरा हूँ तन्हाई के अंधेरों में तेरी यादों को मैंने पाया है जुगनू की तरह डूबते-उतराते तेरी आँखों में तेरी आँखें दिखी है मुझको सागर की तरह तुम जो हंसती हो तो मेरा दिल भी झूम उठता है मैंने पाया है तेरी हंसी को फूलों की तरह तेरे चेहरे को देखते नही भरता मन है तेरा चेहरा है अँधेरे में रौशनी की तरह तू-ही-तू है हर तरफ मेरी जिन्दगी में अब तो तेरा होना है मेरे होने की तरह.

हाय-हाय री निंदिया

नींद भी इक नशा है जिसका असर कुछ कम नही नींद में हो तो ज़माने भर का कोई गम नही नींद की खातिर सहे क्या-क्या सितम हम ने नही फिर भी दामन नींद का छोड़ा कभी हम ने नही किनारे पर हाथ थामे और छोड़ दे मझधार में लोग ऐसे बहुत इस दुनिया में उनमे हम नही नींद की खातिर सही है जिल्लतें- दुश्वारियां फिर भी यारी नींद से अपनी हुई कुछ कम नहीं जिन्दगी की जरुरत भी, मौत की आहट भी नींद नींद क्या है, क्या कहूं,इसे जानना मुमकिन नही नींद है तो ख्वाब है और ख्वाबों  से है जिन्दगी नींद ना हो तो किसी की जिन्दगी रौशन नही.

तन्हाई

जब कभी तन्हा-तन्हा होता हूँ आंसू आते नहीं, पर रोता हूँ सोचता हूँ कि यादों से जरा दूर रहूँ फिर भी यादों के संग ही होता हूँ याद आता है की पैरों में है जंजीर पड़ी जब कभी उड़ने को मैं होता हूँ रट रहा राम-राम, मरम जानता ही नहीं प्रेम की रट लगाये मैं भी एक तोता हूँ. जाने क्या गम है, दिल मेरा नम है दुनिया क्या जाने, हँसता हूँ न रोता हूँ भीड़ में खुद को ढूंढे फिरता हूँ वहीँ तनहाइयों में खुद को मैं खोता हूँ.

नए साल के भारत से

नए साल के भारत से है  उम्मीदे नयी-नयी झारखण्ड का भ्रष्ट नाच ना हो फिर से कभी फिर से किसी रुचिका को ना जान गवानी पड़े और ना कोई अपराधी पा जाये सत्ता की कुर्सी रीढविहीन प्रजातंत्र को उसकी बैकबोन मिल जाये नेताओं-अफसरों में थोड़ी नैतिकता आ जाये बेचारी निरीह जनता की निरीहता गुम जाये देश को प्रेरित कर सकने वाले कुछ नेता सामने आये आतंकवाद और नक्सलवाद का तांडव नृत्य थमे भाषा और क्षेत्रीयता के झगडे अब तो जरा कमे कूटनीति में भारत फिर से चाले अच्छी चले दुनिया के मसलो में भारत की तूती बोले    ग्राफ गरीबी का तेजी से नीचे आता जाये हर हाथ को काम और हर मुंह दाना पाए शिक्षा का स्तर तेजी से ऊपर चढ़ता जाये भारत और इंडिया की खाई पाटी जाये . दुआ यही है की भारत का ना आशावाद मरे इतने सालों से आशा पर जिन्दा हैं कितने मुर्दे.

बलात्कार के विरुद्ध

साथियों, इस साल के आखिरी महीनों ने हमारे देश की तथाकथित नैतिकता की पूरी तरह पोल खोल कर रख दी है. आंध्र के राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी हाल में मीडिया में छाया  सेक्स स्कैंडल हो या फिर हरयाणा में आज से दो दशकों पहले इक किशोरी का शोषण कर के उसे आत्महत्या पर मजबूर कर देने के आरोप में फंसे  हरयाणा के पूर्व पुलिस प्रमुख राठौर का मामला हो,साफ दीखता है कि बाड़ ने ही खेत को खाना शुरू कर दिया है. बच्चियों,किशोरियों और महिलाओं के शोषण का यह जो चक्रव्यूह फैला हुआ है उसके खिलाफ हर एक को उठ खड़े होने कि जरुरत है. देश में जो यह बलात्कारी मानसिकता फैलती जा रही है, उससे हर महिला आज अपने को असुरक्षित महसूस कर रही है.  आपके विचारों का इंतजार रहेगा कि इस परिस्थिति में हम लोग क्या बदलाव ला सकते है. मुझे शर्म है की मैं एक ऐसे समाज का हिस्सा हूँ जिसमे कोई भी लड़की खुद  को सुरक्षित नही महसूसती घर के बाहर की बेशर्म दुनिया में ही नही नैतिकता के पर्दों से ढके घर में भी. न जाने कैसा कुंठित नैतिक समाज है हमारा जिसमे साठ साला व्यक्ति की काम वासना भड़क उठती है छः साल की अकेली लड़की को देखकर. जिस समाज में हर

निठारी

बच्चों! किसी पर भरोसा न करना सीखना होगा तुम्हे, अगर तुम चाहते हो अपनी रक्षा. भेडिये हर तरफ है इंसानों के भेष में. सीखो हर बड़े पर अविश्वास करना, पता नही उनमे कौन हो शैतान, खूनी, बलात्कारी, नरपिशाच. बच्चों! अब बड़े बचपन से ही तुम्हे छोड़ना होगा अपना बचपना, अपनी मासूमियत, अपना भोलापन. बड़ों की इस खतरनाक दुनिया में जीने के लिए निहायत जरुरी है बचपन से ही तुम्हारा बड़ा होना.

मेरे ऑरकुट प्रोफाइल की शीर्ष पंक्तियाँ

*** लापता मेरी आँख का आंसू तेरी आँखों में मैंने जब देखा होठों में कैद कर लिया, फिर गुमने ना दिया. (दिसम्बर २००९) *** सागर जैसी गहरी आँखों में नीली उदासी रहती है जो आंसू की लहरों में ढलके गालों के तट पर बहती है.         (15 नवम्बर  2009) *** वक़्त की शाख से कुछ फूल हमने तोड़े थे तेरे जुड़े में लगाने को.... मगर कभी तुम ने वक़्त न दिया.. कभी वक़्त ने बेरहमी की.          (नवम्बर 2009 ) *** मिटटी के दीयों से नही जायेगा अँधेरा दिल का दिया जला सको तो रौशन रात हो.         (17 अक्टूबर 2009 ) *** सारी दुनिया की सुधि पाई, पर मेरे भाई! क्या सीखा गर प्रेम की पीड़ा समझ न आयी?          (25 सितम्बर 2009 ) *** खुशियाँ लुटाता रहा, खुशियाँ मैं पाता रहा खुशियाँ बटोरने में लग गया मैं जब से खुशियाँ मुझसे भागती फिर रही है तब से.        (05 जुलाई 2009 ) *** छलकी हुई आँखों को तेरे होठों ने जब छू लिया वे आंसू, आंसू न रहे, मोती बने, लुढ़क पड़े.      (०१ मार्च २००९) *** अपने हाथों से बनाया है मुकद्दर अपना अपने ही हाथों मिटा डालू तो मलाल नहीं.        (17 मई  2009 ) *** जिन

जला सको तो जलाओ दिल का दिया

रात कितनी काली है कितनी खाली-खाली है. रौशनी गुमती जाती जिन्दगी से और तुम कहते हो दीवाली है. जब कोई दिया यहाँ बुझता है किसी कोने से बजती ताली है. धन की देवी की ये तो पूजा है पैसे वाले की ये दीवाली है. चंद लोगों के हिस्से ऐश आयी सारी है कितने लोगों के पेट आजकी रात खाली हैं. रौशनी बढती जाती रोज है बाहर और भीतर की दुनिया हुई स्याह काली है. जला सको तो जलाओ दिल का दिया तभी लगेगा की आज भी दीवाली है.

भारत बनाम इंडिया

संविधान कहता है हमारे देश को इंडिया that is भारत पर हम उस भारत के बाशिंदे हैं जो इंडिया नहीं. इंडिया और भारत के बीच की खाई बहुत लम्बी है, चौडी है, बहुत गहरी है; पर कौन सुने- सरकार तो सरकार, जनता तक बहरी है. भारत भूख से रोता है, ठण्ड से मरता है, भारत डाल फंदा गले में आत्महत्या करता है; भारत काम की तलाश में फिरता है मारा-मारा, भारत हर तरफ से दुरदुराया जाता है बेचारा. भारत गांवों में, स्लमों में बसता है, भारत जहाँ भी हो, उसकी हालत खस्ता है; इंडिया उसे देख नाक-भौं सिकोड़ता है, घृणा से थूक उसपे, मुंह अपना मोड़ता है. इंडिया की भाषा अंग्रेजी है, कल्चर विदेशी है, इंडियन यहाँ का नही, अमरीका का देशी है; इंडिया का पेट भरा है, पर उसकी भूख बड़ी है, वहीँ भारत को हर वक़्त दो जून की रोटी की पड़ी है. भारत इंडिया में खुद को अजनबी पाता है, इंडिया का भारत से बस शोषक-शोषित का नाता है; भारत का यह जीवट है की भारत अब तक जिन्दा है, पर, अब भारत अपने भारत होने पर शर्मिंदा है.

ईश्वर,खुदा और GOD की भाषा (लघुकथा)

खुदा को उर्दू के सिवा कुछ न आता था, ईश्वर संस्कृत तो जानते ही थे, हिंदी भी धीरे-धीरे सीख गए थे और God तो अंग्रेजी छोड़ कुछ बोलते-सुनते ही न थे. पर प्रॉब्लम महसूस हो रही थी सबको धीरे-धीरे. धरती पर धार्मिक एकता बढ़ रही थी, खुदा, God और भगवान के बन्दे एक हो रहे थे, आपस में घुल-मिल रहे थे.एक दिन उपरवालों ने भी सोचा की हम देवता लोगों को भी आपस में घुलना-मिलना चाहिए. सो एक दिन उपरवालों की मीटिंग शुरू हुई. अध्यक्षता का जिम्मा God को सौपा गया. सभा की शुरुआत हुई. God बोले- "Good morning to all of You." थोडा-सा भगवान को समझ में आया, थोडा खुदा से discuss कर के क्लिअर किया की कोई गाली-वाली तो नही दी गई है. God ने छोटी सी स्पीच दी, खुद बोले, खुद समझे. ईश्वर की बारी आयी, वसुधैव कुटुम्बकम का नारा लगाया. धाराप्रवाह संस्कृतनिष्ठ हिंदी शुरू हुई. God परेशान, खुदा हैरान, खुदा थोडा-बहुत समझे. खुदा आये, खुदाई की चर्चा शुरू हुई. ईश्वर को लगा की धरती पर कहीं खुदाई करवानी है, बैठे-बैठे ही बोले- हो जायेगा भाई, परेशान न हो. God बेचारे मुह ताकते हुए बैठे रहे. सब समझ रहे थे की वो कुछ नही समझ रहे

ये दुनिया कैसी दुनिया है ?

इस दुनिया में फूल हुए कम कांटे ज्यादा हैं फूल बचे हैं जो भी वो सब हारे-मांदे हैं | अच्छे लोग बने हैं मानो प्राणी चिडियाघर के और बुरे लोगों के हाथों पैने भाले हैं | देखा है अच्छे लोगों को मैंने घुटते तिल-तिल और बुरे लोगों के घर में खुशियाँ नाचे हैं दुनिया बन गयी ऐसी जिसमें चांदी शैतानों की और भले लोगों को उनकी जान के लाले हैं कभी-कभी शक होता है क्या है कोई ऊपर में या फिर उसकी आँखों पर मोटे-से ताले हैं आश न खो दुनिया बदलेगी दिल ये कहता है. देखे इस आशा पर कब तक हम जीनेवाले हैं

ओ माँ! तुम सुन रही हो ना!

ओ माँ! मेरी आवाज सुनो मैं तुम्हारी बगिया में अन्खुवाता बिरवा हूँ मत तोड़ने दो इसे किसी नादान को मत रौंदने दो इसे किसी हैवान को. ओ माँ! पुरुष बेटे के जन्म पर खुशियाँ मनाता है तुम क्यों नही खुशियाँ मनाती बेटियों के जन्म पर क्या इतनी कमजोर हो तुम की मेरे दुनिया में आने से पुरुषों की इस दुनिया में खुद को असुरक्षित महसूस करती हो? ओ माँ! भूलती क्यों हो यह बात की गर्भ में तुम भी रही होगी एक दिन पुरुषों के दवाब से झुककर तुम्हारी माँ ने यदि गर्भ में ही तुम्हारी हत्या होने दी होती, तो क्या होता? सृष्टि की आदिमाता ने यदि लड़कियों की भ्रूण-हत्या होने दी होती तो शायद मानव जाति कब की लुप्त हो चुकी होती. ओ माँ! जबतक मैं सुदूर अनंत में थी मैंने कुछ नही माँगा मगर, अब जब मैं तुम्हारे गर्भ में हूँ धरा पर जन्म लेना हक़ है मेरा मेरे इस हक़ के लिए तुम्हे लड़ना होगा उनसे जो स्रष्टा नही हैं मगर संहार में लगे हैं. ओ माँ! लड़की जनने की आशंका से क्यूँ मुरझाई हो तुम? क्या खुद पर विश्वास नही, या मुझ पर विश्वास नहीं? पुरुष बेटों पर गर्व करता है तुम बेटियों पर गर्व करना सी

ईमान मर नहीं सकता

 आज के इस भयानक दौर में, जहाँ ईमान की हर जुबान पर खामोशी का ताला जडा है. चाभी एक दुनाली में भरी सामने धरी है , फ़िर भी मैं कायर न बनूँगा अपनी आत्मा की निगाह में फ़िर भी मैं, रत्ती भर न हिचकूंगा चलने में ईमान कि इस राह पे। मैं अपनी जुबान खोलूँगा मैं भेद सारे खोलूँगा- (बेईमानों- भ्रष्टाचारियों की काली करतूतों के ) मैं चीख-चीख कर दुनिया भर में बोलूँगा- ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। मैं जानता हूँ कि परिणाम क्या होगा- मेरी जुबान पर पड़ा खामोशी का ताला बदल जाएगा फांसी के फंदे में और फंदा कसता जायेगा- भिंच जायेंगे जबड़े और मुट्ठियाँ आँखें निष्फल क्रोध से उबलती बाहर आ जाएँगी प्राण फसेंगे, लोग हसेंगे पर संकल्प और कसेंगे. देह मर जायेगा मगर आत्मा चीखेगी, अनवरत, अविराम- ''ईमान झुक नहीं सकता, ईमान मर नही सकता, चाहे हालत जो भी हो जाये, ईमान मर नही सकता, ईमान मर नही सकता. -2004 - (स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भष्टाचार को उजागर करने पर जान से हाथ धोने वाले 'यथा नाम तथा गुण' सत्येन्द्र डूबे तथा ईमान की हर उस आवाज को समर्पित जिसने झुकना गवारा ना किया बेईमानी

दुनिया को कह दो की गाँधी को अंग्रेजी नहीं आती

आजादी की पूर्वसंध्या में एक महान मनीषी आत्मा ने दुनिया के बहाने अपने देशवासियों को पैगाम दिया था भाषिक गुलामी की केंचुले उतार फेंकने को उनके देशवासी गुलामी की केंचुल निकालने की आधी-अधूरी कोशिश में, आज तक अंग्रेजी की खूंटी से उल्टे टंगे हैं. मामला क्या है? केंचुल है कि उतरती ही नही या कि केंचुल के अन्दर का प्राणी केंचुल से बाहर आना ही नहीं चाहता. गाँधी के लिए मातृभाषा माँ-जैसी थी कहा था गाँधी ने की माँ जैसी भी हो बच्चे को जीवनदायी अमृत माँ से ही मिलता है पर हमारी बोतलबंद दूध पर पली पीढी को माँ के दूध के स्वाद और मातृभाषा की मिठास का क्या पता बोतलबंद दूध की तरह बोतलबंद भाषा भी समा चुकी है हमारी नस-नस में (क्षीण करती हुई हमारी जीवनीशक्ति को) सुना है की दो सगे भाइयों को विदेशी भाषा में बाते करते सुन मर्माहत हुए थे गाँधी कहा था की जिस देश के लोग इस कदर मानसिक गुलाम हों उस देश को आजादी मिलकर भी क्या खाक मिलेगी? और आज हमारे आजाद भारतवर्ष में ये आलम है की माँ-बाप अपने छोटे बच्चों के सामने अपनी भाषा में नही अंग्रेजी में बातें करते हैं ताकि अनायास ही सीख सके बच्चा फर्र-फर्र अंग्रेजी अपनी भाषा मे

कितनी भाषाओँ से कितनी बार

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए मैंने जाना है की हर भाषा संजोये होती है एक अलग इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की हर भाषा में उसके बोलने वालों की हर ख़ुशी और गम का सारा हिसाब-किताब मौजूद होता है. हर वो भाषा जो और भाषाओँ को मानती है बहन और नही रखती उनकी प्रगति से कोई डाह-द्वेष उनको आकर छलती है कोई साम्राज्यवादी भाषा कहती है की अब इस भाषा में नए समय को व्यक्त नही कर सकते, पर चिंता क्यूँ है, मैं हूँ ना! और धीरे-धीरे इक भाषा दूसरी भाषा को अपनी गुलामी करने को मजबूर करती है उनको छोड़ देती है उन लोगों के लिए जिनके मुख से अपना बोला जाना उसे नागवार है आखिर मजदूरों, भिखारियों, आदिवासियों, बेघरों, वेश्याओं, यतीमों, अनपढों या एक शब्द में कहे तो हाशिये पर जीने वालों के लिए भी तो कोई भाषा होनी चाहिए ना? कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए महसूसा है मैंने कितनी ममता होती है हर एक भाषा में कितनी आतुर स्नेहकुलता से अपनाती है वो हर उस बच्चे को जो उसकी गोदी में आ पहुंचा है बाहें पसारे, बच्चा- जिसे अभी तक तुतलाना तक नही आता नयी भाषा में. कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए म

इश्क का फ़लसफा

इश्क में मंजिल आसान नही होती काश की तुम इससे अनजान नही होती। इश्क तो भूलभुलैयाँ है देह और मन की किधर है प्रेम,किधर वासना,पहचान नही होती। इश्क तो फूल है कमल का जिसकी आभा पंक में वासना के रहके भी म्लान नही होती। पंख होंगे वासना के, इश्क के तो पाँव होते हैं तुम भी ये जान लो की इश्क में उड़ान नहीं होती। इश्क तो बंदगी है, सादगी में पलता है इश्क सच्चा है वही जिसमे झूठी शान नही होती। शमा के इश्क में जलता हुआ परवाना सुनो कहता है इश्क में जान जो देती हैं, वो नादान नहीं होती। इश्क का फ़लसफा समझा तुमने गर होता जान जाती की यूँही बुलबुलें कुर्बान नहीं होतीं.

उदासी- सी- उदासी

* जिस उदासी की कोई वजह ढूंढे न मिले वो उदासी कितनी उदास होती है। *खुशियों के पीछे भागता रहा तमाम उम्र जब भी रुका देखा उदासी मेरे साथ थी। *आँसुओं के एक समंदर में लहरे गहरी उदासियों की अवसाद के तट पर सर पटक कर बार- बार लौटती मझधार में। *उदास सुबह ने कहा- उदास मत होना उदास शाम ने कहा - उदास मत होना उदास दुनिया ने कहा -उदास मत होना मैंने हलके से मुस्का के कहा सबसे- ओढी हुई खुशी से शालीन उदासी कहीं भली। *लोग मुझसे पूछते हैं मेरी उदासी का सबब मैं जरा मुस्कुरा के कहता हूँ-'कहाँ उदास हूँ मैं- वो तो बस यूँ ही तबियत जरा नासाज सी है। लोग सुनकर बड़ी अदा से सर डुलाते हैं, मुझे लगता हैं मेरे चेहरे से मेरा राज भांप जाते हैं। *तेरी चमकती उदास आँखें, तू हंसेगा तो रो देंगी, तेरे आंसुओं से धुलकर तेरा चेहरा खिल उठेगा.

ममता का पेड़

ममता के पेड़ की छाया तले मैंने जीवन गुजारा ग़मों से परे मैंने सीखा लुटाना प्रेम सबों पर मैंने सीखा लगाना स्नेहलेप ग़मों पर मन में मेरे तमन्ना यही है बसी- मैं भी ममता का पेड़ हो सकूँ एक दिन.

इश्क करके देख

इश्क करके देख रूह आजाद होगी इश्क करके देख रोशन ये कायनात होगी इश्क करके देख खुशनुमा हयात होगी इश्क करके देख, इश्क ही हर बात होगी.

प्रेम का सच-झूठ

(मन्नू भंडारी जी और उनकी कहानी 'यही सच है' को समर्पित) प्रेम में हम कह नही सकते यही सच है और वह है झूठ बस यही कह सकते की या तो सभी सच है या सभी है झूठ. प्रेम पाखी के परों में एक पर है सुख असीम और दूजा पर है उसका वेदना निस्सीम. प्रेम का है एक पहलु सहज, साम्य,निर्विकार, और उसका दूजा पहलू वासना-तृष्णा का ज्वार. प्रेम सागर की सतह पर मन लहर बन डोलता बैचैन होकर वहीँ गहराई में उसकी मुक्त आत्मा शांत है सब अहम् खोकर. प्रेम का जो सच है सच वो जिन्दगी का भी प्रेम के जो संशय संशय वे जिंदगी के भी. प्रेम में पाना नही कुछ प्रेम में खोना नही कुछ प्रेम में बस प्रेम का विस्तार ही होता है सबकुछ.

मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी

पता नही कब से मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी है हर मुश्किल में हर बेबस की ढाल महात्मा गाँधी है. अक्सर इस जुमले को सुनते- सुनते मन में आता है - गाँधी जी का मज़बूरी से ऐसा भी क्या नाता है? ऑफिस की दीवारों पर गाँधी की फोटो टंगी-टंगी बाबुओं का घूस मांगना देखा करती घडी- घडी चौराहों- मैदानों में बापू की प्रतिमा खड़ी- खड़ी नेताओं के झूठे वादे सुनती विवश हो घडी-घडी गाँधी का चरखा, गाँधी की खड़ी आज अतीत हुई, गाँधी के घर में ही देखो गोडसे की जीत हुई. गाँधी जी की हिन्दुस्तानी पड़ी आज भी कोने में, गाँधी के प्यारे गांवों में कमी न आयी रोने में. नोटों पर छप, छुपकर गाँधी सब कुछ देखा करते हैं हर कुकर्म का, अपराधों का मन में लेखा करते हैं. गाँधी भारत का बापू था, इंडिया में उसका काम नही, मज़बूरी के सिवा यहाँ होठों पर गाँधी नाम नही. इतना कुछ गुन-कह-सुन मैंने बात गांठ यह बंधी है- गाँधी होने की मज़बूरी का ही नाम महात्मा गाँधी है.

प्रेम अकेला कर देता है

प्रेम अकेला कर देता है दिल में पीड़ा भर देता हैं कुछ खोने का डर देता है खामोशी को स्वर देता है नयनो में जल भर देता है दुनिया बदल कर धर देता है प्रेम अकेला कर देता है।

केरल- चंद क्षणिकाएँ

*घर से इतनी दूर आया, मन था दुखी- दुखी केरल की पहली बारिश में भीगा, हुआ सुखी *भाषा नई -नई है, है परिवेश नया-नया लोग मुखर हैं बहुत और मेरा मौन नया-नया एक पुरानी चीज साथ जिसने ना छोड़ा है बस एक तन्हाई है जिसने मुख ना मोड़ा है.