ये दुनिया कैसी दुनिया है ?

इस दुनिया में फूल हुए कम कांटे ज्यादा हैं

फूल बचे हैं जो भी वो सब हारे-मांदे हैं |


अच्छे लोग बने हैं मानो प्राणी चिडियाघर के

और बुरे लोगों के हाथों पैने भाले हैं |


देखा है अच्छे लोगों को मैंने घुटते तिल-तिल

और बुरे लोगों के घर में खुशियाँ नाचे हैं


दुनिया बन गयी ऐसी जिसमें चांदी शैतानों की

और भले लोगों को उनकी जान के लाले हैं


कभी-कभी शक होता है क्या है कोई ऊपर में

या फिर उसकी आँखों पर मोटे-से ताले हैं


आश न खो दुनिया बदलेगी दिल ये कहता है.

देखे इस आशा पर कब तक हम जीनेवाले हैं

टिप्पणियाँ

उन्मुक्त ने कहा…
विचारों में प्रवाह है। लिखते चलिये।

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