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धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ

२०-८-२०१२ धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ | हर कोई फिट कर रहा अपनी- अपनी गोटियाँ || व्यवस्था का बूढ़ा गिद्ध है हरपल चौकन्ना | जनता जिसे दिखती है बोटियाँ-ही-बोटियाँ || अपने ही देश में, लोग बेगाने हुए | दर-दर भटक रहे बनके घुमंतू भोटियाँ || दल-दल के दांत है दिखाने के और ही | मगर हमाम में सब, यार हैं   लँगोटियाँ || ---केशवेंद्र ---

शेर सिंह का लोकतंत्र

१.       शेर सिंह का लोकतंत्र जंगल के जानवरों की सभा में एक मरियल से चूहे ने जिसने शेर को जितने के लिए मतदान किया था, जंगल के राजा शेर से बड़ी हिम्मत उठा कर एक सवाल पूछने की जुर्रत की – “महाराज, आपने वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद आप हम गरीब छोटे जानवरों का और हमारे विकास का पूरा ध्यान रखेंगे मगर एक साल में भी ऐसा कुछ हुआ नहीं.” शेर सिंह जो चुनाव के वक्त इतने विनम्र थे कि हर एक चूहे-खरगोश –हिरन तक के घर जा वोट माँगा था, दहाड़े- “गिरफ्तार करो कमबख्त को, ये सरकार गिराने की साजिश करने वालों में शामिल है. ऐसे लोगों को मैं अच्छी तरह जनता हूँ, ये लोग समाज और लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है.” चूहा गिरफ्तार कर लिया गया और आजकल वो माओवादी होने के आरोप में जेल में सड़ रहा है.