क्यूँ कहते हो कि बेटी परायी है
यह कविता जितनी मेरी नन्हीं
बिटिया के लिए है उतनी ही दुनिया की हर बेटी के लिए है | नीलेश रघुवंशी जी की
कविता की इक पंक्ति याद आ रही है कि –“इस दुनिया को तोड़-मरोड़कर बनानी चाहिये इक
नयी दुनिया/ बेटी जिसमे इतनी परायी न हो”|
वाकई, बेटियां अनमोल होती
है | हमें इस दुनिया को उनके लिए सुरक्षित, सुंदर और अपनापन भरी बनाने में अपना हरसंभव योगदान देना होगा |
मेरी नन्हीं परी जब से घर
में आयी है |
मेरे ख्वाबों-ख्यालों पे वही
छायी है ||
ख़ुशी के आंसुओं से मेरी आँख
छलछलाई है |
नींद में सोयी हुई जब वो
मुस्करायी है ||
गोद में बिटिया मेरी पहले-पहल
जब आयी |
मेरी ख़ुशी तितली-सी फड़फड़ायी
है ||
उसकी किलकारियों-से खिल उठा
घर सारा |
उसके रोने में भी मानों
बजती शहनाई है ||
बेटियां तो खुदा की नेमत है
|
फिर क्यूँ कहते हो कि बेटी परायी है ||
---केशवेन्द्र कुमार---
टिप्पणियाँ
उसके रोने में भी मानों बजती शहनाई है ||
बेटियां तो खुदा की नेमत है |
फिर क्यूँ कहते हो कि बेटी परायी है ||
...यही विरोधाभास समाज में घुन का काम करता है ...
बहुत सुन्दर सार्थक रचना