तुम्हे देख के ऐसा लगता है
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
इक आंसू की बूँद जो छलकी नही
नयनों तक आई प लुढकी नही
जीती भी रही मरती भी रही
फिर आँखों-ही-आँखों में सूख चली.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
गंगा के जैसी दिखती हो तुम
पावन सबको करती आई
पर तुमको सबने मैला किया
तुम रह गयी अपनी परछाईं.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे राधा खड़ी हो यमुना तट
रोती भी नही, हंसती भी नही
सुध-बुध बिसरा कर तन-मन की
निर्मोही की बाट अगोरे है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे बादल का इक छोटा टुकड़ा
आकाश के कोने में तन्हा
छुप-छुप के रोया करता है
हर ग़म को छुपाये फिरता है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई बिन माँ का बच्चा
हँसना भी भूला, रोना भी
उसे भूख-प्यास का भी पता नही
आकाश निहारा करता है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई कली मुरझाई-सी
खिलने से पहले लील गई जिसको
इस जग़ की निठुराई
कोमलता का करुणांत हुआ.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे इक अभिमन्यु हो रण में
आशा सारी नैराश्य भरी
फिर भी रथ-चक्र उठाता है
लड़ता जाता अंतिम पल तक.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई दिया अंधियारों में
कोई साथी नही कोई संगी नही ,
तूफ़ान के झोंके हैं चहुदिश,
फिर भी मुस्काकर जलता है
तुम्हे देख के ऐसा लगता है.
इक आंसू की बूँद जो छलकी नही
नयनों तक आई प लुढकी नही
जीती भी रही मरती भी रही
फिर आँखों-ही-आँखों में सूख चली.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
गंगा के जैसी दिखती हो तुम
पावन सबको करती आई
पर तुमको सबने मैला किया
तुम रह गयी अपनी परछाईं.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे राधा खड़ी हो यमुना तट
रोती भी नही, हंसती भी नही
सुध-बुध बिसरा कर तन-मन की
निर्मोही की बाट अगोरे है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे बादल का इक छोटा टुकड़ा
आकाश के कोने में तन्हा
छुप-छुप के रोया करता है
हर ग़म को छुपाये फिरता है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई बिन माँ का बच्चा
हँसना भी भूला, रोना भी
उसे भूख-प्यास का भी पता नही
आकाश निहारा करता है.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई कली मुरझाई-सी
खिलने से पहले लील गई जिसको
इस जग़ की निठुराई
कोमलता का करुणांत हुआ.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे इक अभिमन्यु हो रण में
आशा सारी नैराश्य भरी
फिर भी रथ-चक्र उठाता है
लड़ता जाता अंतिम पल तक.
तुम्हे देख के ऐसा लगता है
जैसे कोई दिया अंधियारों में
कोई साथी नही कोई संगी नही ,
तूफ़ान के झोंके हैं चहुदिश,
फिर भी मुस्काकर जलता है
तुम्हे देख के ऐसा लगता है.
टिप्पणियाँ
आकाश के कोने में तन्हा
छुप-छुप के रोया करता है
हर ग़म को छुपाये फिरता है.
वैसे तो पूरी कविता ही अच्छी है मगर ये पंक्तियाँ हमें मोहित कर गयीं.......
आकाश के कोने में तन्हा
छुप-छुप के रोया करता है
हर ग़म को छुपाये फिरता है." these r my heart touching lines...
जैसे कोई बिन माँ का बच्चा
हँसना भी भूला, रोना भी
उसे भूख-प्यास का भी पता नही
आकाश निहारा करता है.
Samay ne chheen liya jisase
hansna-rona, bhookh-pyaas,
wah bin maa ka bachchaa udaas,
aakash taankar sota hai
uske sapno ke taar jude hain,
sooraj kee garmi se
chanda kee sheetalta se
nakshatron kee tim-tim se hi
uski aankhon ke jugnoo jagmag hote hain
iseeliye wah बिन माँ का बच्चा
आकाश निहारा करता है.
Keshvendra tumhe dekhkar
sachmuch aisa lagta hai ki
jaise ab bhi ran-praangan mein
avashesh bachaa hai kahin ek abhimanyu akela hi tatpar
ladne ko rath-chakra uthaaye.