धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ
२०-८-२०१२ धर्म की आंच पर सिक रही राजनीति की रोटियाँ | हर कोई फिट कर रहा अपनी- अपनी गोटियाँ || व्यवस्था का बूढ़ा गिद्ध है हरपल चौकन्ना | जनता जिसे दिखती है बोटियाँ-ही-बोटियाँ || अपने ही देश में, लोग बेगाने हुए | दर-दर भटक रहे बनके घुमंतू भोटियाँ || दल-दल के दांत है दिखाने के और ही | मगर हमाम में सब, यार हैं लँगोटियाँ || ---केशवेंद्र ---