इश्क का फ़लसफा

इश्क में मंजिल आसान नही होती
काश की तुम इससे अनजान नही होती।

इश्क तो भूलभुलैयाँ है देह और मन की
किधर है प्रेम,किधर वासना,पहचान नही होती।

इश्क तो फूल है कमल का जिसकी आभा
पंक में वासना के रहके भी म्लान नही होती।

पंख होंगे वासना के, इश्क के तो पाँव होते हैं
तुम भी ये जान लो की इश्क में उड़ान नहीं होती।

इश्क तो बंदगी है, सादगी में पलता है
इश्क सच्चा है वही जिसमे झूठी शान नही होती।

शमा के इश्क में जलता हुआ परवाना सुनो कहता है
इश्क में जान जो देती हैं, वो नादान नहीं होती।

इश्क का फ़लसफा समझा तुमने गर होता
जान जाती की यूँही बुलबुलें कुर्बान नहीं होतीं.

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