त्रिवेणी - स्याह समय में

कलम आजकल बंद पड़ी है, कागज़ कोरे कोरे हैं  |
स्याह समय में, आशा के उजले  कण थोड़े थोड़े हैं |

स्याही आजकल कागज नहीं, चेहरे काले करती है ||


टिप्पणियाँ

Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।
बेनामी ने कहा…
nice poem..you can publish your poetry at www.Saavan.in and add wings to your blog :)
Unknown ने कहा…
Bahut khoob sir

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