ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर

ख्वाब इक खोया हुआ फुटपाथ पर |
सर्द से कांपा किया था रात भर ||

आँख को क्या, महलों में सोई रही |
ख्वाब तड़पा, आँख को, रात भर ||

आँख भर आयी बेचारे ख्वाब की |
मिल गई इस सच से जो उसकी नजर ||

ख्वाब जाड़ें में ठिठुर कर भी ना मरा |
गर्मियों में, छाँव ढूंढ छुपाया सर ||

आंसुओं से भी भीगा ना था, इतना वो |
बारिशों में ख्वाब भीगा इस कदर ||

ख्वाब अब फुटपाथों का बाशिंदा है |
देख महलों को फेर लेता है नजर ||

ख्वाब का ये हाल सब कोई देखते हैं |
और चल देते हैं आँखों में आंसू भर ||

ख्वाब अब भी है भटकता रात- दिन |
ढूंढता अपने लिए आँखों का घर ||

ख्वाब से आँख की दूरी अब है बहुत |
नींद आँखों में आती नहीं रात भर ||


०७/०५/११

टिप्पणियाँ

ख्वाब अब फुटपाथों का बाशिंदा है |
देख महलों को फेर लेता है नजर ||
bahut badhiyaa
Unknown ने कहा…
bahut achha..
कृपया मेरी भी कविता पढ़ें और अपनी राय दें..
www.pradip13m.blogspot.com
mridula pradhan ने कहा…
bahut sunder.
KESHVENDRA IAS ने कहा…
प्रदीप जी, रश्मि जी ओर मृदुला जी,
रचना को पढ़ने ओर सराहने के लिए आप लोगों का शुक्रिया.
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
ख्वाब अब फुटपाथों का बाशिंदा है |
देख महलों को फेर लेता है नजर ||
ख्वाब का ये हाल सब कोई देखते हैं |
और चल देते हैं आँखों में आंसू भर ||


सच की तस्वीर दिखाती धारदार ग़ज़ल के लिए
आपको हार्दिक बधाई।

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