द्रौपदियों के चीरहरण के देश में
द्रौपदियों के चीरहरण के देश में |
दुर्योधन-दु:शासन है हर वेश में |
एक की रक्षा कर लौटे कि दूजी पुकार |
कृष्ण बेचारे पड़े हुए है क्लेश में |
सत्ता भीष्म पितामह- सी लाचार पड़ी है |
या फिर लुत्फ़ उठाती है, लाचारी के भेष में |
द्रौपदी, कब तक कृष्ण-कृष्ण गुहराओगी |
आ जाओ तुम अब काली के वेश में |
रक्तबीज की भांति हैं ये कामुक पिशाच |
अट्टहास करो इनके वध के शेष में |
---केश्वेंद्र ---
५-५-२०१३
दुर्योधन-दु:शासन है हर वेश में |
एक की रक्षा कर लौटे कि दूजी पुकार |
कृष्ण बेचारे पड़े हुए है क्लेश में |
सत्ता भीष्म पितामह- सी लाचार पड़ी है |
या फिर लुत्फ़ उठाती है, लाचारी के भेष में |
द्रौपदी, कब तक कृष्ण-कृष्ण गुहराओगी |
आ जाओ तुम अब काली के वेश में |
रक्तबीज की भांति हैं ये कामुक पिशाच |
अट्टहास करो इनके वध के शेष में |
---केश्वेंद्र ---
५-५-२०१३
टिप्पणियाँ
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
आ जाओ तुम अब काली के वेश में ...
समय की पुकार तो यही है ... काली का भेस धारण करना होगा नारी को ...
अच्छी रचना है ...
कृष्ण विचारे पडे हुए क्लेष में
अब एक नहीं कृष्ण को हजारों अवतार
लेने होंगे.