एक गीत होलिका के नाम (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर)
जलाओ जलाओ और जलाओ।
जितनी मर्जी तुम्हारी होलिका जलाओ ।
हाँ, आ गई थी अपने दुष्ट भाई की बातों में;
भोले प्रह्लाद को छल से मारने के षड्यंत्र में ।
मगर, एक नारी थी मैं ;
नहीं सह पाया मन अपने भतीजे या,
एक बच्चे को जिंदा जलाने की पीड़ा ।
हां, बैठी थी उसे लेकर लपलपाती चिता पर ,
अपना अग्नि क्षम वस्त्र ओढ़ कर ,
मगर जब आग लगाई गई और लगा कि-
अब भोले प्रह्लाद की जान जाने ही वाली है-
जाग उठी ममता मेरी, सोई थी जो कुंभकर्णी निंद्रा में ।
सर्वस्व त्याग का वो पुण्य क्षण था,
जब मैंने अपनी अग्निरोधी चादर प्रह्लाद को उढ़ा दी,
और खुद को लपलपाती अग्नि की
लपटों के हवाले कर दिया ।
पुत्र प्रह्लाद तो आंखें मूंदे अपने आराध्य
विष्णु की उपासना में लीन था ।
देखने वालों को लगा मानों दैवी चमत्कार से
मेरी चादर आ गई प्रह्लाद के ऊपर
और हहाती अग्नि की लपटों के बीच भी
बाल भी बांका न हुआ उस नन्हें विष्णुभक्त का ;
और उन्होंने सोचा की पापिन होलिका जल मरी।
तब से लेकर आज तक,
लोग होलिका के जल मरने और प्रह्लाद के
बचने की खुशी में मनाते हैं होलिका दहन ।
और, हर साल न जाने कितनी महिलाएं बच्चे
जला दिए जाते हैं इसी सहृदय समाज में
कभी दहेज तो कभी गृहकलह तो कभी किसी नाम पर।
जलाओ जलाओ और होलिका जलाओ ।
मगर, बस इतना याद रहे -
कि तुम्हारे आस पास कोई स्त्री या कोई बच्चा
यदि जीवन संघर्ष की किसी आग में जल रहा हो;
मूक दर्शक न बने रहना, यथासंभव
उसे बचाने की कोशिश करना ।
जलाओ जलाओ और जलाओ ।
जितनी मर्जी तुम्हारी होलिका जलाओ ।
आप सभी को जीवन के रंगों के और खुशियों, आह्लाद, आनंद के महापर्व होली की शुभकामनाएं।
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