कितनी भाषाओँ से कितनी बार

कितनी भाषाओँ से कितनी बार
गुजरते हुए मैंने जाना है की
हर भाषा संजोये होती है
एक अलग इतिहास, संस्कृति और सभ्यता
की हर भाषा में उसके बोलने वालों की हर
ख़ुशी और गम का सारा हिसाब-किताब मौजूद होता है.

हर वो भाषा जो और भाषाओँ को मानती है बहन
और नही रखती उनकी प्रगति से कोई डाह-द्वेष
उनको आकर छलती है कोई साम्राज्यवादी भाषा
कहती है की अब इस भाषा में नए समय को
व्यक्त नही कर सकते, पर चिंता क्यूँ है, मैं हूँ ना!

और धीरे-धीरे इक भाषा दूसरी भाषा को
अपनी गुलामी करने को मजबूर करती है
उनको छोड़ देती है उन लोगों के लिए
जिनके मुख से अपना बोला जाना उसे नागवार है
आखिर मजदूरों, भिखारियों, आदिवासियों,
बेघरों, वेश्याओं, यतीमों, अनपढों या एक शब्द में कहे
तो हाशिये पर जीने वालों के लिए भी तो कोई
भाषा होनी चाहिए ना?

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए महसूसा है मैंने
कितनी ममता होती है हर एक भाषा में
कितनी आतुर स्नेहकुलता से अपनाती है
वो हर उस बच्चे को जो उसकी गोदी में
आ पहुंचा है बाहें पसारे, बच्चा-
जिसे अभी तक तुतलाना तक नही आता नयी भाषा में.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
मैंने महसूसा है की भाषा कभी भी
थोपकर नही सिखाई जा सकती,
जबतक अन्दर से प्रेम नही जागा हो,
भाषा जुबान पर भले चढ़े, दिल पर नही चढेगी.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
देखा है मैंने की सत्ता और बाजार ने
हर बार कोशिश की है, और अब भी कर रहे हैं
भाषा को अपना मोहरा बनाने की
पर भाषा है की हर बार आम आदमी के पक्ष में
खड़ी हो गयी इस बात की परवाह किये बिना
की कौन खडा है सामने.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
जाना है की संवाद चाहती है भाषाएँ
भाषाओँ को बोलनेवाले लोग
भाषाओँ में लिखने वाले साहित्यकार
एक-दुसरे से
पर भाषा की राजनीति करने वाले
नही चाहते ऐसा और खडा कर देते है
सगी बहन जैसी भाषाओँ को एक-दुसरे के विरूद्व
उनकी मर्जी के खिलाफ.

भाषाओँ के साथ दिक्कत यही है
की हर भाषा में चीखता हुआ इन्सान
सबसे दूर तक सुना जाता है
और अच्छे इंसानों की खामोशी बस उन्ही तक
सिमट कर रह जाती है.
भाषा को बचाए रखने के लिए
भाषा में अच्छे इंसानों की चीख अब बहुत जरुरी है.

टिप्पणियाँ

Batangad ने कहा…
बढ़िया लिखा है
pritima vats ने कहा…
बेहतरीन कविता के लिए आपको बहुत सारी बधाई।
बहुत सुंदर रचना है आपकी...नियमित लेखन से आप हिंदी कविताओं को नयी ऊंचाईयां दे सकते है
shama ने कहा…
Sundar rachana..haath kangan ko aarsee kya dikhaun? Lekin shabdon se adhik, aankhen boltee hain...chehra bolta hai...baat kahneka andaaz batata hai,ki, shabd narazgee ke hain,lekin kahe premse ja rahe hain!

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Chandan Kumar Jha ने कहा…
बेहतरीन रचना. आभार.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल
Unknown ने कहा…
वाह !
शानदार
जानदार
शाहकार कविता के लिए साधुवाद !
very sensitive poem ,gives a different taste.
We hope to see many more in due course of time.
keep writing.
my heartly best wishes,
dr.bhoopendra
Deepak "बेदिल" ने कहा…
hmmm...bahut achche ,,bahut achchi baat kahi hai aapne rachna me ..aese hi likhte rahiye,,,

Deepak "bedil"

Http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
KESHVENDRA IAS ने कहा…
आप सबों का आभार मेरी हौसला आफजाई के लिए. समीर लाल जी को उनके सुझाव के लिए धन्यवाद. आप सभी लोगों ने मुझे अपने ब्लॉग को गंभीरता से लेने की प्रेरणा दी है. अब मैं अपने ब्लॉग को नियमित रूप से समय देते हुए अपनी रचनाओं के साथ आपके बीच चिट्ठाकारों की इस महफ़िल में कभी पाठक, कभी लेखक बन गाहे-बगाहे धमकता रहूँगा. आप लोगों को भी आपके सुन्दर रचनात्मक जीवन हेतु शुभकामनाएँ.
kkk ने कहा…
आपकी रचनाऔँ के लिये तहे दिल से शुक्रिया ।

और के इन्तजार मे . . . . . . .
Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…
वाह ...वाह बेहद उम्दा
कमल' की कलम ने कहा…
अति सुन्दर ।।।

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