एक शेर अपना एक पराया- 4
दोस्तों, फिर से आपकी सेवा में हाजिर है इस श्रंखला की चौथी कड़ी. उम्मीद है की ये पेशकश आपको पसंद आ रही है. आप की समालोचनाओं का इंतजार रहेगा.
ज़ख्म खिले तो बात बने
फूलों का खिल जाना क्या
ग़म की दौलत है तो है
दुनिया को दिखलाना क्या
*****ज़फर रज़ा****
अश्क़ जो उमड़े आँखों में
रुकना क्या बह जाना क्या
###केशवेन्द्र####
**********
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
****NEERAJ GOSWAMI*****
हम को ग़म भी मिले तो नही ग़म कोई
तुमको खुशियाँ मिले ये ही अरमान है.
-------Keshvendra------
*********
कुछ लोग इस शहर में हमसे भी हैं खफा
हर एक से अपनी भी तबियत नही मिलती.
-------निदा फाजली-------
आईने सच दिखाते हैं या झूठ, नहीं मालूम मगर
जो आईने में है उससे अपनी सूरत नहीं मिलती.
---केशवेन्द्र----
***********
कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता
हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता
बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता
यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता
---फिराक गोरखपुरी------
जो बिकना था तो यूँ ही बिक गए होते, बेशर्मों!
यूँ बिकने की कीमत बढ़ाने को तो इमाँ नही होता.
-------केशवेन्द्र---------
*********
"प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तै करने में वक्त तो लगता है "
-----हस्ती मल जी हस्ती---
झूठ को पंख मिले है वो तो उड़ता फिरे फ़र-फ़र
सच को चलकर आने में वक़्त तो लगता है.
अपनी जमीन से उखड़ कर आया हूँ नयी जगह
फिर से जड़ें ज़माने में वक़्त तो लगता है.
----केशवेन्द्र----
*********
जिन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा
काफिला साथ चला और सफ़र तन्हा
अपने साये से चौक जाते हैं
उम्र गुजरी है इस कदर तन्हा
---गुलज़ार---
सड़कें NH बनी जब से, है मुंह फेर लिया
किनारे गुमसुम खड़े हैं शज़र तन्हा
छू के लौट आई है किनारों को लहर
लौटी है देखो मगर किस कदर तन्हा.
----केशवेन्द्र----
********
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वक़्त रहता नही कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है
-----गुलज़ार----
रूठ जाना तो होठों पे जड़ लेना ताले
आपकी ये अदा भी हमी सी है.
----केशवेन्द्र---
ज़ख्म खिले तो बात बने
फूलों का खिल जाना क्या
ग़म की दौलत है तो है
दुनिया को दिखलाना क्या
*****ज़फर रज़ा****
अश्क़ जो उमड़े आँखों में
रुकना क्या बह जाना क्या
###केशवेन्द्र####
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खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
****NEERAJ GOSWAMI*****
हम को ग़म भी मिले तो नही ग़म कोई
तुमको खुशियाँ मिले ये ही अरमान है.
-------Keshvendra------
*********
कुछ लोग इस शहर में हमसे भी हैं खफा
हर एक से अपनी भी तबियत नही मिलती.
-------निदा फाजली-------
आईने सच दिखाते हैं या झूठ, नहीं मालूम मगर
जो आईने में है उससे अपनी सूरत नहीं मिलती.
---केशवेन्द्र----
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कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता
हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता
बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता
यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता
---फिराक गोरखपुरी------
जो बिकना था तो यूँ ही बिक गए होते, बेशर्मों!
यूँ बिकने की कीमत बढ़ाने को तो इमाँ नही होता.
-------केशवेन्द्र---------
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"प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तै करने में वक्त तो लगता है "
-----हस्ती मल जी हस्ती---
झूठ को पंख मिले है वो तो उड़ता फिरे फ़र-फ़र
सच को चलकर आने में वक़्त तो लगता है.
अपनी जमीन से उखड़ कर आया हूँ नयी जगह
फिर से जड़ें ज़माने में वक़्त तो लगता है.
----केशवेन्द्र----
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जिन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा
काफिला साथ चला और सफ़र तन्हा
अपने साये से चौक जाते हैं
उम्र गुजरी है इस कदर तन्हा
---गुलज़ार---
सड़कें NH बनी जब से, है मुंह फेर लिया
किनारे गुमसुम खड़े हैं शज़र तन्हा
छू के लौट आई है किनारों को लहर
लौटी है देखो मगर किस कदर तन्हा.
----केशवेन्द्र----
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शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वक़्त रहता नही कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है
-----गुलज़ार----
रूठ जाना तो होठों पे जड़ लेना ताले
आपकी ये अदा भी हमी सी है.
----केशवेन्द्र---
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