मुझे अच्छे लगते हैं

दोस्तों, दिसंबर 2005 में लिखी हुई पर अपने दिल के काफी करीब की इस कविता को आप लोगों के सामने रख रहा हूँ. उस वक़्त जो चीजें मुझे अच्छी लगती थी, आज भी उनमे कोई बदलाव नही आया है.



मुझे अच्छे लगते हैं

मुझे अच्छा लगता है कलकल करता झरना

मुझे अच्छी लगती है चहचहाती हुई चिड़ियाँ

मुझे अच्छी लगती है खिलखिलाती हुई लडकियाँ.



मुझे अच्छी लगती है उगते हुए सूरज की लालिमा

मुझे अच्छी लगती है युवा सूर्य की प्रखर उर्जा

मुझे अच्छा लगता है ढलते सूरज का अपराजेय भाव



मुझे अच्छे लगते है छोटे- छोटे बच्चे

मुझे अच्छी लगती है उनकी चंचलता

उनकी तोतली बोली, उनकी अबूझ भाषा

सबसे बढ़कर अच्छी लगती है-

उनके नयनों में चमकता विश्वास

और उनके मन में दमकती आशा.



मुझे अच्छे लगते हैं खिले हुए फूल

सौंदर्य का खजाना लुटते निःस्वार्थ

भीनी-भीनी सुगंध से सुरभित करते

दिग-दिगंत जन-जीवन



मुझे अच्छी लगती है ईमानदारी

मुझे अच्छी लगती है आशा

सबसे अच्छी लगती है मुझे

प्रेमी-स्नेही जनों के नयनों की

मूक भाषा.



मुझे हर वो चीज अच्छी लगती है

जो इस सुंदर दुनिया को बनाती है

और सुंदर और प्यारी और अच्छी.

टिप्पणियाँ

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।
जो बातें आपको अच्छी लगती हैं वो ही सभी को अच्छी लगनी चाहियें जिसे नहीं लगती तो उसे इंसान कहना मूर्खता होगी...
नीरज
KESHVENDRA IAS ने कहा…
नीरज जी, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका. वाकई, अच्छी चीजें हर किसी को अच्छी मालूम होती है. हमारी सदिच्छाएं दुनिया में सौंदर्य और अच्छाइयों को थोड़ा भी बढ़ा सके तो वही लेखन की सार्थकता है.
KESHVENDRA IAS ने कहा…
संजय जी, कविता पसंद आई और आपने उसके प्रशंषा में दो शब्द भी लिखे, उसका ढेर सारा शुक्रिया.

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