तू मेरा आईना है, मैं तेरी परछाईं हूँ

तू मेरा आईना है, मैं तेरी परछाईं हूँ /
तू कभी मुझमें, कभी तुझमें मैं समाई हूँ //

तू मेरे दिल के कितने पास-पास रहता है /
तुझसे ये पूछने बड़ी दूर से मैं आई हूँ //

न छोड़ने कि कसमें खा के जिसको पकड़ा था /
वही मैं यार कि छूटी हुई कलाई हूँ //

उसे खबर न हुई जिसके लिए फफ़क के बही /
यारों, मैं इस जहाँ कि सबसे बेबस रुलाई हूँ //

खुशियों के लिबास से आंसूओं के तन,दर्द के बदन को ढके /
मैं किसी गुमनाम शायर की सबसे करुण रुबाई हूँ //

टिप्पणियाँ

smita ने कहा…
well said dear... don't know how u can be so sensible..!!
न छोड़ने कि कसमें खा के जिसको पकड़ा था /
वही मैं यार कि छूटी हुई कलाई हूँ //

पंक्ति में सुकून देने वाला दर्द का भाव अन्तर्निहित पाता हूँ
बढ़िया श्रीमान

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