तू मेरा आईना है, मैं तेरी परछाईं हूँ
तू मेरा आईना है, मैं तेरी परछाईं हूँ /
तू कभी मुझमें, कभी तुझमें मैं समाई हूँ //
तू मेरे दिल के कितने पास-पास रहता है /
तुझसे ये पूछने बड़ी दूर से मैं आई हूँ //
न छोड़ने कि कसमें खा के जिसको पकड़ा था /
वही मैं यार कि छूटी हुई कलाई हूँ //
उसे खबर न हुई जिसके लिए फफ़क के बही /
यारों, मैं इस जहाँ कि सबसे बेबस रुलाई हूँ //
खुशियों के लिबास से आंसूओं के तन,दर्द के बदन को ढके /
मैं किसी गुमनाम शायर की सबसे करुण रुबाई हूँ //
तू कभी मुझमें, कभी तुझमें मैं समाई हूँ //
तू मेरे दिल के कितने पास-पास रहता है /
तुझसे ये पूछने बड़ी दूर से मैं आई हूँ //
न छोड़ने कि कसमें खा के जिसको पकड़ा था /
वही मैं यार कि छूटी हुई कलाई हूँ //
उसे खबर न हुई जिसके लिए फफ़क के बही /
यारों, मैं इस जहाँ कि सबसे बेबस रुलाई हूँ //
खुशियों के लिबास से आंसूओं के तन,दर्द के बदन को ढके /
मैं किसी गुमनाम शायर की सबसे करुण रुबाई हूँ //
टिप्पणियाँ
वही मैं यार कि छूटी हुई कलाई हूँ //
पंक्ति में सुकून देने वाला दर्द का भाव अन्तर्निहित पाता हूँ
बढ़िया श्रीमान