जिंदगी भूलभुलैया तो है जरुर मगर
बाहर की गर्मी गिला देती है |
भीतर की गर्मी जिला देती है ||
इश्क के जाम की, मुझको नहीं तमन्ना है|
साकी अनजान है, आकर के पिला देती है||
जब कभी दिल की कली मुरझाती है|
प्रेम की बारिश, उसे फिरसे खिला देती है||
मैं तो करता हूँ उससे इश्क बेइंतहा|
फिर वो क्यूँ बेमुरव्वती का सिला देती है ||
जब कभी जिंदगी मुरझाती है |
उसकी मुस्कान जिला देती है ||
गैरों की सैकड़ों ठोकरों की परवा नहीं |
अपनों की एक ठोकर भी हिला देती है ||
जिंदगी भूलभुलैया तो है जरुर मगर |
भूले-बिछुड़ों को किसी मोड़ मिला देती है ||
(१३ अप्रैल २००४ को लिखित )
भीतर की गर्मी जिला देती है ||
इश्क के जाम की, मुझको नहीं तमन्ना है|
साकी अनजान है, आकर के पिला देती है||
जब कभी दिल की कली मुरझाती है|
प्रेम की बारिश, उसे फिरसे खिला देती है||
मैं तो करता हूँ उससे इश्क बेइंतहा|
फिर वो क्यूँ बेमुरव्वती का सिला देती है ||
जब कभी जिंदगी मुरझाती है |
उसकी मुस्कान जिला देती है ||
गैरों की सैकड़ों ठोकरों की परवा नहीं |
अपनों की एक ठोकर भी हिला देती है ||
जिंदगी भूलभुलैया तो है जरुर मगर |
भूले-बिछुड़ों को किसी मोड़ मिला देती है ||
(१३ अप्रैल २००४ को लिखित )
टिप्पणियाँ
अपनों की एक ठोकर भी हिला देती है ||.................
सत्य वचन कहा आप ने अपनों की एक ठोकर भी हिला देती है...
बधाइयाँ..
साकी अनजान है, आकर के पिला देती है||
जब कभी दिल की कली मुरझाती है|
प्रेम की बारिश, उसे फिरसे खिला देती है||"'
" these are superb lines..."