धर्म के नाम पर अनगिन हैं मरे लोग
साथियों, इधर हाल में धार्मिक हादसों में मरने वाले लोगों कि संख्या काफी बढ़ी है..धार्मिक उत्सवों में जुटी भारी भीड़ को आजकल ये पता नही होता कि कब किसको मोक्ष मिलने का नम्बर आ जाये. कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी चर्च..उपरवाला भी हादसों की इस बढती तादात को देख चिंताकुल होगा, ऐसा मुझे लगता है. हाल में शबरीमला में मकरज्योति देखने को जुटी भीड़ ओर वहां भगदड़ में मरे सैकड़ों लोगों को देख एक गज़ल १५ जनवरी को लिखी थी..आज संयोग से मिली तो सोचा कि आप लोगों के सामने पेश कर दूँ. इस गज़ल में खुदा शब्द उपरवाले का प्रतीक है..उसे खुदा कहे, ईश्वर कहे या फिर God के नाम से पुकारे, इस गज़ल की फरयाद हर किसी से है
खुदा के खौफ से हरदम हैं डरे लोग |
धर्म के नाम पर अनगिन हैं मरे लोग ||
जिंदगी इंसान की, कितनी सस्ती हो गई |
कीड़े-मकोडों की जानिब हैं मरे लोग ||
खुदा के राज में भी अब जरा बदहाली है |
फिर भी खुदा से खैर की दुआ हैं करे लोग ||
बिना डुलाये हाथ-पाँव, खुदा कुछ नहीं देता |
फिर भी खुदा से भीख मांगते हैं फिरे लोग ||
खुदा भी दिन में दिया लेके ढूंढता है फिरे |
कितने दुर्लभ हैं हो गए, दुनिया में खरे लोग ||
कभी खुद से, कभी खुदा, कभी दुनिया से हैं गुस्सा |
पर करते हैं कुछ भी नहीं, आँखों में आंसू भरे लोग ||
खुदा के खौफ से हरदम हैं डरे लोग |
धर्म के नाम पर अनगिन हैं मरे लोग ||
जिंदगी इंसान की, कितनी सस्ती हो गई |
कीड़े-मकोडों की जानिब हैं मरे लोग ||
खुदा के राज में भी अब जरा बदहाली है |
फिर भी खुदा से खैर की दुआ हैं करे लोग ||
बिना डुलाये हाथ-पाँव, खुदा कुछ नहीं देता |
फिर भी खुदा से भीख मांगते हैं फिरे लोग ||
खुदा भी दिन में दिया लेके ढूंढता है फिरे |
कितने दुर्लभ हैं हो गए, दुनिया में खरे लोग ||
कभी खुद से, कभी खुदा, कभी दुनिया से हैं गुस्सा |
पर करते हैं कुछ भी नहीं, आँखों में आंसू भरे लोग ||
टिप्पणियाँ
कितने दुर्लभ हैं हो गए, दुनिया में खरे लोग ||
कभी खुद से, कभी खुदा, कभी दुनिया से हैं गुस्सा |
पर करते हैं कुछ भी नहीं, आँखों में आंसू भरे लोग||
Very nice creation...