एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
एक चिड़िया जो टूट कर भी टूटी न थी
चिड़ा छोड़ चला उसे, फिर भी आस टूटी ना थी
जग से रूठ कर भी खुद से वो अभी रूठी ना थी
उसके सपनों ने फिर से सीखा चहचहाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
नन्ही चिड़िया ने सहे कितने जुल्मो-सितम
जीती रही खूंखार दुनिया में वो सहम-सहम
और उसपे, कि दुनिया ने नहीं किया कोई रहम
चिडियाँ जीती रही भूल कर के पंख फैलाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिडियाँ जीती रही बरगद की कोटर तले
साँझ ढलती रही, आस का दीपक नही ढले
उसे अब भी था यकीं चिड़ा आएगा मगर
दुनिया ने छीना उससे उम्मीदों का ताना-बाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
कितना रोई चिड़ी जब हुआ, उसका चिड़ा पराया
रोती रही वो पर, आँखों से आंसू तक ना आया
चिड़िया बुत बनी, वो बन गयी अपनी ही छाया
दुनिया के कायदों ने छीना उसका मुस्कुराना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़िया घुटती रही, खुद में सिमटती रही
अपने पंखों को फ़ैलाने से बचती रही
थोड़ी-थोड़ी जिंदादिली उसकी रोज मरती रही
बरगद रो देता था सुन के उसका दर्द भरा गाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
फिर से आया एक चिड़ा, चिड़ी उसको भा गई
अपनी धवल उदासी से उसका मन चुरा गई
पर चिड़ा परेशान, कैसे जीते उसका दिल
उसके इर्द-गिर्द शुरू किया उसने मंडराना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़िया प्रेममयी थी, पुकार अनसुनी न की
चिड़े को प्रेम में अपने, ना देख सकी वो दुखी
उसके प्रेम की परीक्षा उसने थोड़ी सी ली
कहा चिड़े को लेकर के आओ आबो-दाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़ा था अनाड़ी, फिर भी था जोश से भरा
सुबह से शाम तक वो कड़ी मेहनत में जुटा
ना परवा धूप-बारिश की ना बिजली से डरा
उसकी लगन देख चिड़िया ने किया न कोई बहाना.
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
अपनी दुनिया में चिड़ा-चिड़ी खुशी से मगन
पंख अपने पसारे उड़ते फिरे गगन-गगन
कहते मानों हम से, प्रेम है एक अनवरत लगन
प्रेम सफर में लगा रहता है मिलना-खो जाना
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
२७/०४/११ १९:५७:०४
एक चिड़िया जो टूट कर भी टूटी न थी
चिड़ा छोड़ चला उसे, फिर भी आस टूटी ना थी
जग से रूठ कर भी खुद से वो अभी रूठी ना थी
उसके सपनों ने फिर से सीखा चहचहाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
नन्ही चिड़िया ने सहे कितने जुल्मो-सितम
जीती रही खूंखार दुनिया में वो सहम-सहम
और उसपे, कि दुनिया ने नहीं किया कोई रहम
चिडियाँ जीती रही भूल कर के पंख फैलाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिडियाँ जीती रही बरगद की कोटर तले
साँझ ढलती रही, आस का दीपक नही ढले
उसे अब भी था यकीं चिड़ा आएगा मगर
दुनिया ने छीना उससे उम्मीदों का ताना-बाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
कितना रोई चिड़ी जब हुआ, उसका चिड़ा पराया
रोती रही वो पर, आँखों से आंसू तक ना आया
चिड़िया बुत बनी, वो बन गयी अपनी ही छाया
दुनिया के कायदों ने छीना उसका मुस्कुराना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़िया घुटती रही, खुद में सिमटती रही
अपने पंखों को फ़ैलाने से बचती रही
थोड़ी-थोड़ी जिंदादिली उसकी रोज मरती रही
बरगद रो देता था सुन के उसका दर्द भरा गाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
फिर से आया एक चिड़ा, चिड़ी उसको भा गई
अपनी धवल उदासी से उसका मन चुरा गई
पर चिड़ा परेशान, कैसे जीते उसका दिल
उसके इर्द-गिर्द शुरू किया उसने मंडराना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़िया प्रेममयी थी, पुकार अनसुनी न की
चिड़े को प्रेम में अपने, ना देख सकी वो दुखी
उसके प्रेम की परीक्षा उसने थोड़ी सी ली
कहा चिड़े को लेकर के आओ आबो-दाना |
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
चिड़ा था अनाड़ी, फिर भी था जोश से भरा
सुबह से शाम तक वो कड़ी मेहनत में जुटा
ना परवा धूप-बारिश की ना बिजली से डरा
उसकी लगन देख चिड़िया ने किया न कोई बहाना.
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना
अपनी दुनिया में चिड़ा-चिड़ी खुशी से मगन
पंख अपने पसारे उड़ते फिरे गगन-गगन
कहते मानों हम से, प्रेम है एक अनवरत लगन
प्रेम सफर में लगा रहता है मिलना-खो जाना
एक चिड़िया को फिर से मिला आशियाना |
२७/०४/११ १९:५७:०४
टिप्पणियाँ
सुन्दर गीत !
आपकी टिप्पणी पढ़ कर एकदम से मन आपके ब्लॉग की तरफ भागा... झट से खोला.... पढ़ा पाया कि बहुत दिनों से आपके ब्लॉग पर न जा पाने से बहुत कुछ मिस कर गया था. एक शेर अपना एक पराया वाली नयी किस्त दिल-दिमाग को छु गयी.... नयी कविता , अन्ना हजारे , कुछ ग़ज़लें सब से मन में नया उल्लास जग गया. किएरल में लेखनी लगातार चल रही है,,, यह सुखद है.