रिश्ते
रिश्तों की डोर, कहाँ उलझी, कहाँ टूट गयी?
ना की परवा इसकी, तो जिंदगी हमसे रूठ गयी ||
रिश्तों के टूटे हुए धागों से घिरे बैठे हम |
सोचते हैं कि क्या इनकी मजबूती को लूट गयी ||
रिश्तों के जिस घर में सिर्फ दीवारें, दरवाजें नहीं |
जिंदगी ऐसे घर में अपनी झूठ-मूठ गयी ||
रिश्ते शतरंज की बिसात पर खड़े आमने-सामने |
शह और मात के फेर में प्यार की बाजी छूट गयी ||
रिश्ते दिल से निभाना भूली दुनिया, दोष किसे दें ?
ऐसे रिश्तों की गर्मी, हमें बर्फ-सी महसूस गयी ||
ना की परवा इसकी, तो जिंदगी हमसे रूठ गयी ||
रिश्तों के टूटे हुए धागों से घिरे बैठे हम |
सोचते हैं कि क्या इनकी मजबूती को लूट गयी ||
रिश्तों के जिस घर में सिर्फ दीवारें, दरवाजें नहीं |
जिंदगी ऐसे घर में अपनी झूठ-मूठ गयी ||
रिश्ते शतरंज की बिसात पर खड़े आमने-सामने |
शह और मात के फेर में प्यार की बाजी छूट गयी ||
रिश्ते दिल से निभाना भूली दुनिया, दोष किसे दें ?
ऐसे रिश्तों की गर्मी, हमें बर्फ-सी महसूस गयी ||
टिप्पणियाँ
ना की परवा इसकी, तो जिंदगी हमसे रूठ गयी ||
Khoob kaha aapne.... bahut sunder
रिश्तों में इक बार उलझना बाकी है...
आपके शेर जीवन में रिश्तों की अहमियत समझने की प्रेरणा देते है.. बहुत बढ़िया....