उसने देखा इस नज़र से
उसने देखा इस नज़र से |
मैं गिरा अपनी नज़र से ||
अधर में बड़ी देर डोला |
टूटा पत्ता जब शज़र से ||
रात कितनी बाकी है अभी |
पूछे सन्नाटा गज़र से ||
साथ रखना दुआएँ माँ की |
बचाएंगी बुरी नज़र से ||
नज़र में ना चुभो किसीकी |
सबको बरतो इस नज़र से ||
नज़र न आए यार मेरा |
मगर नहीं है दूर नज़र से ||
आईना मैं हूँ तुम्हारा |
मुझको देखो इस नज़र से ||
दिल में अंक गई नजरे उसकी |
उसने देखा इस नज़र से ||
मैं गिरा अपनी नज़र से ||
अधर में बड़ी देर डोला |
टूटा पत्ता जब शज़र से ||
रात कितनी बाकी है अभी |
पूछे सन्नाटा गज़र से ||
साथ रखना दुआएँ माँ की |
बचाएंगी बुरी नज़र से ||
नज़र में ना चुभो किसीकी |
सबको बरतो इस नज़र से ||
नज़र न आए यार मेरा |
मगर नहीं है दूर नज़र से ||
आईना मैं हूँ तुम्हारा |
मुझको देखो इस नज़र से ||
दिल में अंक गई नजरे उसकी |
उसने देखा इस नज़र से ||
टिप्पणियाँ
"उसने देखा इस नज़र से |
मैं गिरा अपनी नज़र से ||"
एक लम्बे समय बाद तुम्हारे ब्लॉग पर आया तो मजा आ गया।
बचाएंगी बुरी नज़र से ||
उम्दा ग़ज़ल हर अशआर काबिले दाद .
बचाएंगी बुरी नज़र से ||
बहुत बढ़िया रचना...
हार्दिक बधाई..
पूछे सन्नाटा गज़र से ||
बेहतरीन .
खूबसूरत रचना...
बहुत खूब..