इक सोते हुए शहर में जागता हुआ मैं
इक सोते हुए शहर में जागता हुआ मैं!
खुद के पीछे तो कभी खुद से भागता हुआ मैं!!
हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!
की किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!
चाहा बहुत है पर अब तक चाहत फ़क़त चाहत ही है!
कि देखूं किसी को खुद को चाहता हुआ मैं!!
इन आँधियों को मेरे घोंसले से न जाने कितना प्यार है!
इन आँधियों पे हूँ हंस रहा तिनके बटोरता हुआ मैं!!
लोग सारे सो चुके, रोशनियाँ अधजागी हैं और!
विरहा की आग में जल रहा तेरी बाट अगोरता हुआ मैं!!
खुद के पीछे तो कभी खुद से भागता हुआ मैं!!
हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!
की किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!
चाहा बहुत है पर अब तक चाहत फ़क़त चाहत ही है!
कि देखूं किसी को खुद को चाहता हुआ मैं!!
इन आँधियों को मेरे घोंसले से न जाने कितना प्यार है!
इन आँधियों पे हूँ हंस रहा तिनके बटोरता हुआ मैं!!
लोग सारे सो चुके, रोशनियाँ अधजागी हैं और!
विरहा की आग में जल रहा तेरी बाट अगोरता हुआ मैं!!
टिप्पणियाँ
सारे शेर अच्छे हैं......ख्याल तो बेहतरीन है ये शेर तो बहुत खूब बन पड़ा है......
हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!
कि किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!
बेहतरीन एहसास बयानी के लिए शुक्रिया.
की किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!
out of the world..keshav bhai ...zabardast sher..standing ovation dena chahioye ise to ..... :)..
mujhe to vo gazal yaad aane lagi- " ek akelaa is shahar me..raat me aour dopahar me......"
bahut badhiyaa likhi he aapne apni rachna..
इन आँधियों पे हूँ हंस रहा तिनके बटोरता हुआ मैं!
वाह...क्या बात है...लाजवाब.
नीरज