इक सोते हुए शहर में जागता हुआ मैं

इक सोते हुए शहर में जागता हुआ मैं!


खुद के पीछे तो कभी खुद से भागता हुआ मैं!!



हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!

की किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!



चाहा बहुत है पर अब तक चाहत फ़क़त चाहत ही है!

कि देखूं किसी को खुद को चाहता हुआ मैं!!



इन आँधियों को मेरे घोंसले से न जाने कितना प्यार है!

इन आँधियों पे हूँ हंस रहा तिनके बटोरता हुआ मैं!!



लोग सारे सो चुके, रोशनियाँ अधजागी हैं और!

विरहा की आग में जल रहा तेरी बाट अगोरता हुआ मैं!!

टिप्पणियाँ

Pawan Kumar ने कहा…
केशव भाई...
सारे शेर अच्छे हैं......ख्याल तो बेहतरीन है ये शेर तो बहुत खूब बन पड़ा है......
हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!
कि किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!
बेहतरीन एहसास बयानी के लिए शुक्रिया.
हर इक जगह तलाशा पर मालूम ना चला!

की किस जगह पे आकर के लापता हुआ मैं!!

out of the world..keshav bhai ...zabardast sher..standing ovation dena chahioye ise to ..... :)..
KESHVENDRA IAS ने कहा…
पवन भाई और स्वप्निल जी, ग़ज़ल को पसंद करने और इस तरह तहे दिल से सराहने का ढेर सारा शुक्रिया. आप लोगों की सराहना और अच्छा लिखने का प्रयास करने को प्रेरित करती है.
Nikhil kumar ने कहा…
i am agree with your advice , i am working on it.....but you are a good writer.... use of words in a sentence is marvelous......
sabse pahle aapka cover hading- prem akela kar deta he.., bahut satik lagaa..darasal iska apna darshan he..kabhi baat hogi ispe bhi..baharhaal,, gazal, ya kahu rachna..hnaa, rachna kahnaa jyada uchit hogaa kyoki gazalo ka ganit badaa hi azeeb hotaa he..kher..
mujhe to vo gazal yaad aane lagi- " ek akelaa is shahar me..raat me aour dopahar me......"
bahut badhiyaa likhi he aapne apni rachna..
इन आँधियों को मेरे घोंसले से न जाने कितना प्यार है!
इन आँधियों पे हूँ हंस रहा तिनके बटोरता हुआ मैं!

वाह...क्या बात है...लाजवाब.
नीरज
KESHVENDRA IAS ने कहा…
नीरज जी, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका.
KESHVENDRA IAS ने कहा…
अमिताभ जी और निखिल भाई, आप दोनों का बहुत-बहुत शुक्रिया.
KESHVENDRA IAS ने कहा…
संजय जी, रचना को पढने और सराहने के लिए आपका आभार.

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