दिल फिर से उम्मीदों की फसल बो गया है
साथियों, आपकी खिदमत में पेश है मेरी शुरुआती गजलों में एक ग़ज़ल. वर्ष 2004 में जब मैंने ग़ज़ल विधा पार हाथ आजमाने की शुरुआत की थी, तो उस समय की लिखी हुई ये छठे नंबर की ग़ज़ल है. ग़ज़ल में मामूली सा संसोधन किया है और कुछ नए शेर आज की रात में जोड़े हैं. शेर संख्या 3-8 नए हैं, आज के लिखे हुए हैं. बाकी शेर पुराने हैं और मार्च 2004 के लिखे हुए हैं.
आपसे मिला हूँ कुछ इस कदर , जिन्दगी का चैन खो गया है
सब कुछ तो है चैन से, बस दिल जरा बैचैन हो गया है. (१)
वो जो फूल है गुलाब का, काँटों के संग खुश था
और झरते-झरते विरह में दो बूँद आंसू रो गया है. (२)
माँ के हाथ नींद में भी झूले को हैं झुला रहे
लोरी सुनते-सुनते बच्चा सो गया है . (3)
अब गिले-शिकवा मिटा के, उसको लगा लो गले
जो आंसुओं से दिल के दाग-धब्बे धो गया है. (4)
कचरे से कुछ बीन कर खाते हुए भिखारी ने कहा
भला हो ऊपरवाले का कि पेट में कुछ तो गया है. (5)
लौट कर वो आ ना सका, राहे सारी बंद थी
लक्ष्मण रेखा पार कर के जो गया है. (6)
जाने वालों को यूँ तड़प कर पुकारा नही करते
जाने दो उसे, जो गया है वो गया है. (7)
दुनियावालों और कितने पाप करोगे, व्यर्थ में
पुराने पापों की गठरी मसीहा ढ़ो गया है. (8)
वो आया था यहाँ तब , रो रहा पुरजोर था
पर मिला है मुझसे जो, हँसते हुए वो गया है. (9)
दर्द जब इतना मिला है कि खुद पे बस न रहा है
न जाने किस ने थपकी दी है , हर ग़म खो गया है. (10)
मेरी आँखों में सपना था, मेरी यादों में अपना था
न जाने किसने झकझोड़ा है , सब कुछ खो गया है. (11)
जिन्दों कि भीड़ में जिन्दगी है गुम गयी कुछ इस कदर
गोया कौमों कि भीड़ में फुलस्टॉप खो गया है. (12)
फसल उम्मीदों कि भले ही इस बार जल गई हो
मगर दिल फिर से उम्मीदों की फसल बो गया है. (13)
आपसे मिला हूँ कुछ इस कदर , जिन्दगी का चैन खो गया है
सब कुछ तो है चैन से, बस दिल जरा बैचैन हो गया है. (१)
वो जो फूल है गुलाब का, काँटों के संग खुश था
और झरते-झरते विरह में दो बूँद आंसू रो गया है. (२)
माँ के हाथ नींद में भी झूले को हैं झुला रहे
लोरी सुनते-सुनते बच्चा सो गया है . (3)
अब गिले-शिकवा मिटा के, उसको लगा लो गले
जो आंसुओं से दिल के दाग-धब्बे धो गया है. (4)
कचरे से कुछ बीन कर खाते हुए भिखारी ने कहा
भला हो ऊपरवाले का कि पेट में कुछ तो गया है. (5)
लौट कर वो आ ना सका, राहे सारी बंद थी
लक्ष्मण रेखा पार कर के जो गया है. (6)
जाने वालों को यूँ तड़प कर पुकारा नही करते
जाने दो उसे, जो गया है वो गया है. (7)
दुनियावालों और कितने पाप करोगे, व्यर्थ में
पुराने पापों की गठरी मसीहा ढ़ो गया है. (8)
वो आया था यहाँ तब , रो रहा पुरजोर था
पर मिला है मुझसे जो, हँसते हुए वो गया है. (9)
दर्द जब इतना मिला है कि खुद पे बस न रहा है
न जाने किस ने थपकी दी है , हर ग़म खो गया है. (10)
मेरी आँखों में सपना था, मेरी यादों में अपना था
न जाने किसने झकझोड़ा है , सब कुछ खो गया है. (11)
जिन्दों कि भीड़ में जिन्दगी है गुम गयी कुछ इस कदर
गोया कौमों कि भीड़ में फुलस्टॉप खो गया है. (12)
फसल उम्मीदों कि भले ही इस बार जल गई हो
मगर दिल फिर से उम्मीदों की फसल बो गया है. (13)
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