जब कबीर सा कोई फक्कड़ लिखे ग़ज़ल
बहुत दिनों से लिख नहीं पाया कोई भी ग़ज़ल
तन्हाई में लिख ना डालूं कोई रोई-सी ग़ज़ल
दुनिया की तेज धूप में कुम्हलाये अहसासों के पौधे
आह! कितनी मेहनत से मैंने बोई थी ग़ज़ल
जब कबीर सा कोई फक्कड़ लिखे ग़ज़ल
दिल की भूख मिटाती है वो लोई-सी ग़ज़ल
दुनिया की गंदगी ने हर बार दिक दिया
चाहा तो था लिखना गंगाज़ल से धोई-सी ग़ज़ल
चाहा था ऐसी ग़ज़लें हों, झकझोर डाले दुनिया को
अफ़सोस की अब तक लिखी सब सोई-सी ग़ज़ल
तन्हाई में लिख ना डालूं कोई रोई-सी ग़ज़ल
दुनिया की तेज धूप में कुम्हलाये अहसासों के पौधे
आह! कितनी मेहनत से मैंने बोई थी ग़ज़ल
जब कबीर सा कोई फक्कड़ लिखे ग़ज़ल
दिल की भूख मिटाती है वो लोई-सी ग़ज़ल
दुनिया की गंदगी ने हर बार दिक दिया
चाहा तो था लिखना गंगाज़ल से धोई-सी ग़ज़ल
चाहा था ऐसी ग़ज़लें हों, झकझोर डाले दुनिया को
अफ़सोस की अब तक लिखी सब सोई-सी ग़ज़ल
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