समानुभूति
ओ वाचाल वाणी !
एक दिन के लिए मूक हो कर देख,
शायद तुझे समझ आ सके दर्द उनका
जिनकी जुबां नही है
या जो जुबां होते हुए भी बे-जुबां है.
ओ चंचल नयन !
एक दिन पलकों के फाटक बंद करके देख,
शायद तू समझ पाए
ज्योतिविहीन जीवनों की व्यथा
और 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का अर्थ.
ओ बावरे श्रवण !
एक दिन के लिए कर्ण-पटलों को बंद कर के देख,
शायद तू अनुभव कर सके उनकी व्यथा
जो सुन नही सकते एक शब्द भी प्यार भरा.
सहानुभूति नही समानुभूति उपजाओ.
वंचितों के जीवन की वंचना मिटाओ.
फूल बन के खुशियों की खुशबू लुटाओ
कर सको यदि ये तो सार्थक होगा जीना तुम्हारा.
एक दिन के लिए मूक हो कर देख,
शायद तुझे समझ आ सके दर्द उनका
जिनकी जुबां नही है
या जो जुबां होते हुए भी बे-जुबां है.
ओ चंचल नयन !
एक दिन पलकों के फाटक बंद करके देख,
शायद तू समझ पाए
ज्योतिविहीन जीवनों की व्यथा
और 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का अर्थ.
ओ बावरे श्रवण !
एक दिन के लिए कर्ण-पटलों को बंद कर के देख,
शायद तू अनुभव कर सके उनकी व्यथा
जो सुन नही सकते एक शब्द भी प्यार भरा.
सहानुभूति नही समानुभूति उपजाओ.
वंचितों के जीवन की वंचना मिटाओ.
फूल बन के खुशियों की खुशबू लुटाओ
कर सको यदि ये तो सार्थक होगा जीना तुम्हारा.
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