एक शेर अपना-एक पराया-"गुलज़ार साहेब" के शेरों के साथ

साथियों, इस कड़ी में मैं गुलज़ार साहब के लिखे कुछ पसंदीदा शेरों को लेकर उनकी तर्ज़ पर अपने शेर कहने की कोशिश कर रहा हूँ. शेर गुलज़ार साहब के गीतों-नज्मों-गजलों के प्यारे से संग्रह "यार जुलाहे" से लिए गए हैं.

१. हाथ छूटें भी तो रिश्ते नही तोड़ा करते


वक़्त की शाख़ से लम्हे नही तोड़ा करते

----गुलज़ार----


कोई प्यारा सा सपना बेरहमी से टूट जाता है

किसी सोए हुए को कस के नहीं झिंझोड़ा करते.

-----केशवेन्द्र----
 
 
 
२. आप के बाद ये महसूस हुआ है हम को


जीना मुश्किल नहीं और मरना भी दुश्वार नहीं

----गुलज़ार---


कहते रहे रोज तुम्हे तुमसे प्यार करते हैं

और दिल जानता था हमको तुमसे प्यार नहीं

------केशवेन्द्र-----
 
 
 
३. जिन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा


काफिला साथ चला और सफ़र तन्हा



अपने साये से चौक जाते हैं

उम्र गुजरी है इस कदर तन्हा

---गुलज़ार---



सड़कें NH बनी जब से, है मुंह फेर लिया

किनारे गुमसुम खड़े हैं शज़र तन्हा



छू के लौट आई है किनारों को लहर

लौटी है देखो मगर किस कदर तन्हा.

----केशवेन्द्र----



४..दर्द हल्का है साँस भारी है


जिए जाने की रस्म जारी है


आप के बाद हर घड़ी हमने

आपके साथ ही गुजारी है



रात को चांदनी तो ओढ़ा दो

दिन की चादर अभी उतारी है



शाख़ पर कोई कहकहा तो खिले

कैसी चुप-सी चमन में तारी है


कल का हर वाकया तुम्हारा था

आज की दास्ताँ हमारी है.

----गुलज़ार---



हम तो आजिज हुए ना मुहब्बत से
लगता है इश्क की हमें बीमारी है.



जीत की दहलीज पर हो के खड़े

इक गलत चाल और बाजी हारी है.



मौत का खौफ नहीं है हमको

इसलिए जिन्दगी इतनी प्यारी है.

-----केशवेन्द्र----
 
 
5. शाम से आँख में नमी सी है


आज फिर आप की कमी सी है


वक़्त रहता नही कहीं टिक कर

इसकी आदत भी आदमी सी है

-----गुलज़ार----



रूठ जाना तो होठों पे जड़ लेना ताले

आपकी ये अदा भी हमी सी है.

----केशवेन्द्र---

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