कहते हैं कहनेवाले कि स्वराज चल रहा.

किस हाल में हमारा ये समाज चल रहा?
'सब चलता है' के नारे से हर काज चल रहा.

बीते हैं छः दशक, अब भी भूख है, गरीबी है,
सब जानते हैं , फिर भी है ये राज चल रहा.

हिंसा की आग में जनता फतिंगों की तरह भुन रही
इस मुल्क का हाल-ओ-करम नासाज चल रहा.

आकाश की अगाधता को देख कर भी बिना डरे
दूजा किनारा छूने को, परिंदे का परवाज चल रहा.

आतंक का किसी मजहब से न लेना न कोई देना
फूटे थे कल बम मस्जिद में, जब नमाज चल रहा.

कहीं जुबां पे है ताले, कहीं पांवों में हैं छाले,
पर कहते हैं कहनेवाले कि स्वराज चल रहा.

जब मुस्कराना भूलने लगे सभी बच्चे
समझो की खुदा दुनिया से नाराज चल रहा.

ऐसे अनगिन कड़वे सच सीने में मेरे हैं दफ़न
फिर फुर्सत से सुनाऊंगा, मैं आज चल रहा.

टिप्पणियाँ

बहुत अच्छा लिखा आपने.

आभार.
कितनी सहजता से अपनी अनुभूतियोँ को शब्दोँ मेँ पिरो कर कविता का रुप देते हैँ सर हरेक पँक्ति दिल को छू लेती हैँ
MERI AWAAZ ने कहा…
आपके शब्दों ने मन को छू लिया, ऐसा लगा जैसे अंतरात्मा की आवाज को शब्द मिल गयें हों. बहुत बहुत धन्यवाद!
Umesh ने कहा…
केशवेन्द्र, बहुत असरदार बात कही है।------
"जब मुस्कराना भूलने लगे सभी बच्चे
समझो की खुदा दुनिया से नाराज चल रहा."
ऐसे ही लिखते रहो, शायद कुछ बच्चे मुसकराना सीख जायें।
सटीक...यही हो रहा है आज कल...
TRIPURARI ने कहा…
बस आपकी सोच आज के युवा में आकार लेने लगे तो देश का कुछ भला हो सकता है !
dhaval patel ने कहा…
good poem keshav.
keep your creativity up.
try malayalam now :)

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