क्या कभी साहिर को भूली अमृता
जिन्दगी में आ गयी है रिक्तता
मन में फैली कैसी है ये तिक्तता.
प्रेम में इस कदर अँधा हो गया
दुनिया से है हो गयी अनभिज्ञता.
जी रहा हूँ अतीत में मैं इस कदर
की देखता हूँ भविष्य, दिखती शून्यता.
शिथिल तन में मन हुआ है बदहवास
खुशमिजाजी में हुई है न्यूनता.
एक दोराहे पे आ ठिठका खड़ा हूँ
एक तरफ है प्रेम दूजे पूर्णता.
जिन्दगी में आ गया इमरोज, फिर भी
क्या कभी साहिर को भूली अमृता?
मन में फैली कैसी है ये तिक्तता.
प्रेम में इस कदर अँधा हो गया
दुनिया से है हो गयी अनभिज्ञता.
जी रहा हूँ अतीत में मैं इस कदर
की देखता हूँ भविष्य, दिखती शून्यता.
शिथिल तन में मन हुआ है बदहवास
खुशमिजाजी में हुई है न्यूनता.
एक दोराहे पे आ ठिठका खड़ा हूँ
एक तरफ है प्रेम दूजे पूर्णता.
जिन्दगी में आ गया इमरोज, फिर भी
क्या कभी साहिर को भूली अमृता?
टिप्पणियाँ
जिन्दगी में आ गयी है रिक्तता
मन में फैली कैसी है ये तिक्तता.
उर्दू ग़ज़ल के व्याकरण को हिंदी शब्दों का क्या ही आवरण पहनाया है दोस्त....आनंद आ गया.
प्रेम में इस कदर अँधा हो गया
दुनिया से है हो गयी अनभिज्ञता.
जी रहा हूँ अतीत में मैं इस कदर
की देखता हूँ भविष्य, दिखती शून्यता.
दोनों शेर बेहतरीन हैं.....!
एक दोराहे पे आ ठिठका खड़ा हूँ
एक तरफ है प्रेम दूजे पूर्णता.
जिन्दगी में आ गया इमरोज, फिर भी
क्या कभी साहिर को भूली अमृता?
इमरोज़-साहिर- अमृता के त्रिकोण के बहाने ज़िन्दगी की उलझनों को बहुत ही खूबसूरती से प्राकत किया है दोस्त....!जिंदाबाद
Feels, It's God gifted .......one can't imitate 2 be a writer.
Keep on writing........
क्या कभी साहिर को भूली अमृता? "" dont u think, u knw d ans...? love does not allow to forget na.....if something is with ur soul than how its possible dear...?
well keep ur writting...good luck..