जरा पतझड़ में डरा होता हूँ
सूख जाता हूँ, हरा होता हूँ !
जरा पतझड़ में डरा होता हूँ !!
जब तलक कोपलें नयी नहीं आ जाती हैं !
तन से जिन्दा, मगर, मन से मरा होता हूँ !!
दौड़ती-नाचती फिरती हुई दुनिया के बीच !
मैं अपनी जगह पर ही ठहरा होता हूँ !!
बीते कल में चिड़ियों की चीं-चीं सुख देती थी !
आजकल मोटरों की पीं-पीं से बहरा होता हूँ !!
दाना चुगने को जाती है चिड़िया तो दुआ करता हूँ !
और फिर उसके लौटने तक, बैचैन मैं जरा होता हूँ !!
चिलचिलाती धूप में मेरी छाँव सुकून देती है !
मैं झुलसाती धूप में हरियाली का आसरा होता हूँ !!
एक दिन मुझे भी ले डूबेगा लोभ इन्सां का!
पेड़ों पे कुल्हाड़ियाँ चलती देख, मैं अधमरा होता हूँ!!
किसी को छाँव, घर किसी को, किसी को लकड़ी !
खुश हूँ कि, मैं कितनों का सहारा होता हूँ !!
जड़ें तलाशती फिरती हैं पानी पथरायी मिट्टी में !
धरती के सीने से चिपक, मैं और गहरा होता हूँ !!
लाख पतझड़ करे कोशिश मुझे सुखाने की !
बसंत आते ही मैं, मुसकरा के हरा होता हूँ !!
जरा पतझड़ में डरा होता हूँ !!
जब तलक कोपलें नयी नहीं आ जाती हैं !
तन से जिन्दा, मगर, मन से मरा होता हूँ !!
दौड़ती-नाचती फिरती हुई दुनिया के बीच !
मैं अपनी जगह पर ही ठहरा होता हूँ !!
बीते कल में चिड़ियों की चीं-चीं सुख देती थी !
आजकल मोटरों की पीं-पीं से बहरा होता हूँ !!
दाना चुगने को जाती है चिड़िया तो दुआ करता हूँ !
और फिर उसके लौटने तक, बैचैन मैं जरा होता हूँ !!
चिलचिलाती धूप में मेरी छाँव सुकून देती है !
मैं झुलसाती धूप में हरियाली का आसरा होता हूँ !!
एक दिन मुझे भी ले डूबेगा लोभ इन्सां का!
पेड़ों पे कुल्हाड़ियाँ चलती देख, मैं अधमरा होता हूँ!!
किसी को छाँव, घर किसी को, किसी को लकड़ी !
खुश हूँ कि, मैं कितनों का सहारा होता हूँ !!
जड़ें तलाशती फिरती हैं पानी पथरायी मिट्टी में !
धरती के सीने से चिपक, मैं और गहरा होता हूँ !!
लाख पतझड़ करे कोशिश मुझे सुखाने की !
बसंत आते ही मैं, मुसकरा के हरा होता हूँ !!
टिप्पणियाँ
बसंत आते ही मैं, मुसकरा के हरा होता हूँ
...............................
जिजीविषा को दर्शाती पंक्तिया..
बधाइयाँ रचना के लिए...
आशुतोष
http://ashu2aug.blogspot.com/ http://ashutoshnathtiwari.blogspot.com/
सस्नेहाभिवादन !
आनन्द आया आपके यहां आ'कर ।
लाख पतझड़ करे कोशिश मुझे सुखाने की
बसंत आते ही मैं, मुसकरा के हरा होता हूं
भई वाह ! बहुत ख़ूब !
छंद में लिखने की आपकी अभिरुचि अच्छी लगी ।
आप दुष्यंत , ग़ुलज़ार जैसे रचनाकारों के अश्'आर ले'कर भी लिखने के प्रयास करते रहते हैं …
सीखने की प्रवृत्ति ही हमें राह बतला कर मंज़िल तक ले जाती है …
बहुत बहुत शुभकामनाएं हैं …
♥ महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
धरती के सीने से चिपक, मैं और गहरा होता हूँ !!
लाख पतझड़ करे कोशिश मुझे सुखाने की !
बसंत आते ही मैं, मुसकरा के हरा होता हूँ !!
"" here your always be positive attitude is alive...'" be as you are now...