सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा
जिंदगी उलझती रही, मैं उसे सुलझाता रहा |
खुदा ने इश्क की दौलत थी बख्शी, लुटाता रहा ||
रोटी, कपडा, सर पे छत, नाकाफी थे इंसान को |
होश सँभालने से मरने तक वो बस, दौलत जुटाता रहा ||
खुशी के मोती छोड़, दौलत के कंकड़ चुनता रहा इंसान |
खुदा ऊपर से ये नादानी देख मुस्कुराता रहा ||
सफर में रहे हमसफ़र बन के सुख ओर दुःख |
एक आता रहा, एक जाता रहा ||
बददुआओं की तेजाबी बारिशें, कई बार बरसी |
शुक्र है, सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा ||
खुदा ने इश्क की दौलत थी बख्शी, लुटाता रहा ||
रोटी, कपडा, सर पे छत, नाकाफी थे इंसान को |
होश सँभालने से मरने तक वो बस, दौलत जुटाता रहा ||
खुशी के मोती छोड़, दौलत के कंकड़ चुनता रहा इंसान |
खुदा ऊपर से ये नादानी देख मुस्कुराता रहा ||
सफर में रहे हमसफ़र बन के सुख ओर दुःख |
एक आता रहा, एक जाता रहा ||
बददुआओं की तेजाबी बारिशें, कई बार बरसी |
शुक्र है, सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा ||
टिप्पणियाँ
शुक्र है, सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा ||
पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर लेकिन मन पढ़कर खुश हो गया...हर शेर लाजवाब...
फॉलो भी कर रही हूं ताकि रचनाएं मिलती रहें पढ़ने को...
आप भी आइए....
शुक्र है, सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा
बहुत खूब केश्वेन्द्र जी