प्रेम दिवस के अवसर पर एक ग़ज़ल
साथियों, प्रेम दिवस के अवसर पर थोड़ी देर से ही सही पर अपनी ताजी-ताजी ग़ज़ल लेकर आपकी सेवा में हाजिर हो रहा हूँ. आप सब को मेरी शुभकामना की आप सब के जीवन में सच्चा प्रेम आये और आप उसे पहचान कर उसे अपनी जिन्दगी बना सके और फिर औरों की जिंदगियों में भी प्रेम भरी खुशियाँ फैला सके.
प्यार कभी मुहताज नही
मैं शाहजहाँ नहीं और तू मुमताज नही!
अपने प्रेम की निशानी कोई ताज नही!!
दिल ने तब भी छेड़े गीत तुम्हारी यादों के!
जब हाथों में मेरे कोई साज नही!!
बिछड़े हमको कितने ज़माने-से बीत गए!
विरहा की बातें करती रहना, आज नही!!
वो भी वक़्त था लोग कहते थे जब हमसे!
इश्क को छोडके तुमको कोई काज नही!!
राधा के हर आंसू का है दर्द पता!
पर दिल कहता, कान्हा धोखेबाज नही!!
अरमां करता मैं भी ताज बनाऊ इक!
दिल कहता है प्यार कभी मुहताज नही!!
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प्यार कभी मुहताज नही
मैं शाहजहाँ नहीं और तू मुमताज नही!
अपने प्रेम की निशानी कोई ताज नही!!
दिल ने तब भी छेड़े गीत तुम्हारी यादों के!
जब हाथों में मेरे कोई साज नही!!
बिछड़े हमको कितने ज़माने-से बीत गए!
विरहा की बातें करती रहना, आज नही!!
वो भी वक़्त था लोग कहते थे जब हमसे!
इश्क को छोडके तुमको कोई काज नही!!
राधा के हर आंसू का है दर्द पता!
पर दिल कहता, कान्हा धोखेबाज नही!!
अरमां करता मैं भी ताज बनाऊ इक!
दिल कहता है प्यार कभी मुहताज नही!!
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