हंसी होंठ पर आँखें नम है
कैफ़ी आज़मी का एक मार्मिक शेर याद आ रहा है- "आज सोचा तो आंसू भर आये मुद्दतों हो गयी मुस्कराएँ." सचमुच, जीवन की आपाधापी ने आदमी के होंठों से हंसी छीन ली है. हंसी- जो जिन्दगी की सबसे मूल्यवान नेमत है, आज दुर्लभतम हो गयी है. स्वच्छ धवल मुस्कान, कहकहे, मुक्त अट्टहास शायद ही कहीं दिखते हैं. बड़ों की दुनिया इतनी क्रूर, इतनी जालिम, इतनी बेरहम हो गयी है कि प्रकृति ने उससे हंसी छीन ली है. हंसी बची है अगर कहीं तो मासूम बच्चों के पास बची है. बड़ों कि दुनिया में तो हंसी भी बाजार का उत्पाद बन गयी है. मुस्कराने के लिए भी अब विशेष ब्रांड के टूथपेस्ट , ब्रश , क्रीम और मोउथ -फ्रेशनरों कि जरुरत है. हंसी हास्य क्लबों के यहाँ मानों गिरवी रख दी गयी है. आधुनिक युग का मानव हँसे भी तो कैसे हँसे ? आज की इस तेज रफ़्तार दुनिया में उसके पास जीने की भी फुर्सत नही रह गयी है शायद! आदमी आदमी ना रहकर मशीन होता जा रहा है, संवेदन शून्य रोबोट होता जा र...
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