जिन्दगी से जी अभी तक भरा नही

जिन्दगी से जी अभी तक भरा नही


मायने ये है के मैं अब तक मरा नही



जिस शाख से पतझड़ में पत्ते न झड़े

वो शाख बसंत में था हरा नही



दुनिया दुश्वार कर देगी जीना अगर

कहते रहे तुम जरा हाँ, जरा नही.



ईमानवालों की बातें ना सुनो

कहते हैं, ईमानदारी में कुछ धरा नही



खुद को जिन्दा समझ तभी तक 'केशव'

जबतक कि दिल किसी से डरा नही

टिप्पणियाँ

SINGHSADAN ने कहा…
केशव भाई......बेहतरीन मतले पर क्या ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी...क्या शेर गढ़ डाले हैं....

जिन्दगी से जी अभी तक भरा नही
मायने ये है के मैं अब तक मरा नही
ओफो.....क्या कह डाला मित्र....

जिस शाख से पतझड़ में पत्ते न झड़े
वो शाख बसंत में था हरा नही

अच्छा ख्याल है........!
Pawan Kumar ने कहा…
केशव भाई......बेहतरीन मतले पर क्या ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी...क्या शेर गढ़ डाले हैं....

जिन्दगी से जी अभी तक भरा नही
मायने ये है के मैं अब तक मरा नही
ओफो.....क्या कह डाला मित्र....

जिस शाख से पतझड़ में पत्ते न झड़े
वो शाख बसंत में था हरा नही

अच्छा ख्याल है........!

FIRST COMMENT WAS WRONGLY SEND.
KESHVENDRA IAS ने कहा…
पवन भाई, ढेर सारा शुक्रिया. ग़ज़ल के और शेरों को बेहतर बनाने की गुंजाईश थी पर मैं ज्यादा मेहनत कर नही पाया. खैर, आपकी शुभकामनाओं के लिए तहेदिल से आभार.
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

Sanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
KESHVENDRA IAS ने कहा…
Shukriya Sanjay ji.

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