आम की ख्वाहिश लिए बबूल बोता आदमी
कपड़ों के हिसाब से फिट होता आदमी
खुद की अर्थी, खुद के कांधे ढ़ोता आदमी.
मरियल रिक्शेवाले का कचूमर निकालते
गालियाँ बकता जा रहा था मोटा आदमी.
जितने खरे आदमियों के उठाये हैं मुखौटे
हंस के अन्दर से निकला है खोटा आदमी.
देखो जिधर भी, मिल जायेगा तुम्हें उधर
आम की ख्वाहिश लिए बबूल बोता आदमी.
हर आँख से हर आंसू पोछे कैसे कोई भला
जिधर देखो उधर मिलेगा कोई रोता आदमी.
चेहरे के जंगल में भावनाएं लुप्तप्राय हैं
रोबोटों सा दिखने लगा है मशीन होता आदमी.
इतनी अँधेरी रात में भी कोई दिया जल रहा
नींद में मुस्कराया है सपने संजोता आदमी.
खुद की अर्थी, खुद के कांधे ढ़ोता आदमी.
मरियल रिक्शेवाले का कचूमर निकालते
गालियाँ बकता जा रहा था मोटा आदमी.
जितने खरे आदमियों के उठाये हैं मुखौटे
हंस के अन्दर से निकला है खोटा आदमी.
देखो जिधर भी, मिल जायेगा तुम्हें उधर
आम की ख्वाहिश लिए बबूल बोता आदमी.
हर आँख से हर आंसू पोछे कैसे कोई भला
जिधर देखो उधर मिलेगा कोई रोता आदमी.
चेहरे के जंगल में भावनाएं लुप्तप्राय हैं
रोबोटों सा दिखने लगा है मशीन होता आदमी.
इतनी अँधेरी रात में भी कोई दिया जल रहा
नींद में मुस्कराया है सपने संजोता आदमी.
टिप्पणियाँ
खुद की अर्थी, खुद के कांधे ढ़ोता आदमी.
-क्या बात है, बहुत खूब!!
कपड़ों के हिसाब से फिट होता आदमी
खुद की अर्थी, खुद के कांधे ढ़ोता आदमी.
क्या बात है केशव भी......
देखो जिधर भी, मिल जायेगा तुम्हें उधर
आम की ख्वाहिश लिए बबूल बोता आदमी.
यह हुआ हासिले ग़ज़ल शेर.....!
चेहरे के जंगल में भावनाएं लुप्तप्राय हैं
रोबोटों सा दिखने लगा है मशीन होता आदमी.
अद्भुत बिम्व खींच दिया दोस्त ...... बधाई !