एक शेर अपना एक पराया-२
साथियों, लो फिर से मैं आप लोगों की सेवा में हाजिर हूँ एक शेर अपना, एक पराया की दूसरी कड़ी लेकर. प्रयास कैसा लगा बताना मत भूलियेगा. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा.
*********
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो राख जुस्तजू निहाँ क्या है
.....ग़ालिब........
खरोंचे जो दिल पे लगते है कभी नही भरते
जो खोजते हो जिस्म पे निशाँ तो वहाँ क्या है
....केशवेन्द्र.......
*******
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये
=====निदा फाजली=====
कांटे में फंस के तड़पती हुई मछली बोली
ऐ खुदा! इस तरह ना किसी को फंसाया जाये.
------keshav------
********
पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाये कि हम बतलाये क्या...... ग़ालिब
जो उनने पूछा कि कितना प्यार करते हो
तबसे हैं इस सोच में कि जतलाये क्या
हम हनुमान नही इसका ही जरा गम है
वरना कहते कि दिल चीर के दिखाए क्या.... केशवेन्द्र
*********
मुद्दतों से न हमें तेरी याद आई है
और हम भूल गए है तुझे ऐसा भी नही....Firak
इस इश्क की भूलभुलैयाँ में सब कुछ लुटा बैठे
दिल भी गया हमारा और पास में पैसा भी नही....Keshav
**********
ना हो जब दिल ही सीने में
तो फिर मुह में जुबाँ क्यूँ हो
-कमलेश्वर के उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' से
ना हो जब पाँव के नीचे की जमीं
तो फिर सर के ऊपर का आसमां क्यूँ हो
************
ग़ुरबत में हो अगर हम, रहता है दिल वतन में!
समझो वहीँ हैं हम भी, है दिल जहाँ हमारा !!
--- Iqbaal----
क्या हुआ गर छिन गयी पावों के नीचे की जमीं
अब भी सर के ऊपर है नीला आसमाँ हमारा
-Keshvendra
*******
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?
-साहिर लुधियानवी
पास लेटी थी तुम मेरे पर मीलों के थे फासले
आज तन्हाई में उसी रात पे रोना आया.
-केशवेन्द्र
*****
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
- Ahmed Faraz
दिल से चाहो जो बात वो हकीकत बनती है
ठान ले पूरे मन से जो तू वो कर जायेगा
-Keshvendra
********
********
सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं भी इस देश में उर्दू की तरह रहता हूँ.
----निदा फाजली---
साजिशें किसकी, खता किसने की, सजा मुझको
मैं भी चुप हो के सारे रंजों-ग़म को सहता हूँ.
-केशव
********
गुनगुनाता हुआ दिल चाहिए जीने के लिए
इस निजा-ऐ-सहर-ओ-शाम में क्या रक्खा है
हुस्न फनकार की एक छेड़ है इश्क-ऐ-नादाँ
बेवफाई के इस इलज़ाम में क्या रक्खा है
देखना यह है की वो दिल में मकीं है कि नहीं
चाहे जिस नाम से हो नाम में क्या रक्खा है.
----आनंद नारायण मुल्ला--------
पढना हो तो पढ़ लिक्खा है नजरों ने जो दिल पर
छोडो भी, कागज पर लिखे पैगाम में क्या रक्खा है
-केशवेन्द्र---
*********
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो राख जुस्तजू निहाँ क्या है
.....ग़ालिब........
खरोंचे जो दिल पे लगते है कभी नही भरते
जो खोजते हो जिस्म पे निशाँ तो वहाँ क्या है
....केशवेन्द्र.......
*******
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये
=====निदा फाजली=====
कांटे में फंस के तड़पती हुई मछली बोली
ऐ खुदा! इस तरह ना किसी को फंसाया जाये.
------keshav------
********
पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाये कि हम बतलाये क्या...... ग़ालिब
जो उनने पूछा कि कितना प्यार करते हो
तबसे हैं इस सोच में कि जतलाये क्या
हम हनुमान नही इसका ही जरा गम है
वरना कहते कि दिल चीर के दिखाए क्या.... केशवेन्द्र
*********
मुद्दतों से न हमें तेरी याद आई है
और हम भूल गए है तुझे ऐसा भी नही....Firak
इस इश्क की भूलभुलैयाँ में सब कुछ लुटा बैठे
दिल भी गया हमारा और पास में पैसा भी नही....Keshav
**********
ना हो जब दिल ही सीने में
तो फिर मुह में जुबाँ क्यूँ हो
-कमलेश्वर के उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' से
ना हो जब पाँव के नीचे की जमीं
तो फिर सर के ऊपर का आसमां क्यूँ हो
************
ग़ुरबत में हो अगर हम, रहता है दिल वतन में!
समझो वहीँ हैं हम भी, है दिल जहाँ हमारा !!
--- Iqbaal----
क्या हुआ गर छिन गयी पावों के नीचे की जमीं
अब भी सर के ऊपर है नीला आसमाँ हमारा
-Keshvendra
*******
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?
-साहिर लुधियानवी
पास लेटी थी तुम मेरे पर मीलों के थे फासले
आज तन्हाई में उसी रात पे रोना आया.
-केशवेन्द्र
*****
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
- Ahmed Faraz
दिल से चाहो जो बात वो हकीकत बनती है
ठान ले पूरे मन से जो तू वो कर जायेगा
-Keshvendra
********
********
सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं भी इस देश में उर्दू की तरह रहता हूँ.
----निदा फाजली---
साजिशें किसकी, खता किसने की, सजा मुझको
मैं भी चुप हो के सारे रंजों-ग़म को सहता हूँ.
-केशव
********
गुनगुनाता हुआ दिल चाहिए जीने के लिए
इस निजा-ऐ-सहर-ओ-शाम में क्या रक्खा है
हुस्न फनकार की एक छेड़ है इश्क-ऐ-नादाँ
बेवफाई के इस इलज़ाम में क्या रक्खा है
देखना यह है की वो दिल में मकीं है कि नहीं
चाहे जिस नाम से हो नाम में क्या रक्खा है.
----आनंद नारायण मुल्ला--------
पढना हो तो पढ़ लिक्खा है नजरों ने जो दिल पर
छोडो भी, कागज पर लिखे पैगाम में क्या रक्खा है
-केशवेन्द्र---
टिप्पणियाँ
-
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
...
मैं ब्लॉग पर लेखक से ज्यादा पाठक के रूप में मौजूद रहता हूँ. जब भी मौका मिलता है, मैं नए लोगों के ब्लॉग को खोज-खोज कर पढता हूँ और उनकी हौसला-आफजाई की कोशिश करता हूँ. मैं भी यही चाहता हूँ की ब्लॉग पर भारतीय भाषाओँ की उपस्थिति ज्यादा-से-ज्यादा हो.
पुनः, आपको ढेर सारा धन्यवाद.