Ek Sher Apna, Ek Paraya-3
एक अरसे के बाद फिर से मन किया है की उस्तादों के रदीफ़-काफिये की कसौटी पर फिर से जोर-आजमाइश की जाई. तो लीजिए, मीर साहेब का एक शेर और उसी की तुक-ताल में मेरा प्रयास प्रस्तुत है.( 28 Jan 2010)
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इश्क हमारा आह ना पूछो क्या-क्या रंग बदलता है!
खून हुआ दिल दाग हुआ फिर दर्द हुआ फिर गम है अब!!
---मीर---
दुनिया की इस अंधी दौड़ में सब कुछ तो हासिल है हमें!
फिर भी बैठ के सोचा करते,क्या ज्यादा,क्या कम है अब!!
---keshvendra---
********
तुम नही पास, कोई पास नहीं!
अब मुझे जिन्दगी की आस नहीं!!
साँस लेने में दर्द होता है!
अब हवा जिन्दगी की रास नहीं!!
-------जिगर बरेलवी----
इस निगोड़ी जाम से जो बुझ जाये!
ऐसी ओछी हमारी प्यास नही!!
मेरी खुद्दारी को ललकारो नही!
ये किसी के पैरों तले की घास नहीं!!
------केशवेन्द्र------
*********
दिल धड़कने से खफा है और आँखें नम नहीं!
पीछे मुडके देखने की यह सजा कुछ कम नहीं!!
-----शहरयार------
तेरे हुश्न की खुशबू से जुट जायेंगे भँवरे कई नए!
देखना उस भीड़ में सब होंगे, होंगे हम नहीं !!
---केशवेन्द्र---
**********
इस सफ़र में बस मेरी तन्हाई मेरे साथ थी!
हर कदम क्यों खौफ मुझको भीड़ में खोने का था!!
***शहरयार***
जो नही था और हो सकता नहीं था मैं कभी!
बार-बार मुझको गुमाँ, क्यूँ वही होने का था!!
***केशवेन्द्र***
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उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज
- Gulab Khandelwal
चहकती-बहकती जितनी खुशियाँ थी मेरे हिस्से
खुशियों का लिबास ओढ़े उतने गम हैं आज.
--केशवेन्द्र--
*********
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
- जां निसार अख्तर
हमने मांगी ज़ेहन से कुछ बहानों की 'थपकियाँ '
जो सीने में क़ैद आरजुओं को सुलाने के लिए हैं
- Taru
औरों के गम उधार लेते फिरने का पूछो ना सबब हमसे
ये अपनी बंजर पड़ी आँखों को फिर से रुलाने के लिए हैं.
**केशवेन्द्र**
**********
नींदें तो टूटती हैं कई बार रात में
इक ख्वाब है जो फ़िर भी कभी टूटता नहीं
---अशोक मिजाज----
दुनिया तो मतलबी है, रूठती है बात-बात पर
एक तू है, हमसे रूठ कर भी कभी रूठता नही
----केशवेन्द्र-----
*********
ढूंढता है खुलूस लोगों में
ये जो नादान मुझमें रहता है
ग़म किसी का हो ग़म समझता हूँ
अब भी इंसान मुझमें रहता है
हसरतें, आरजू, लगन, चाहत
ग़म का सामान मुझमें रहता है
===ज़फर रज़ा===
प्रार्थनाएँ सुनता हूँ बहरों कि तरह
लगता है भगवान मुझमें रहता है.
----केशवेन्द्र-----
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इश्क हमारा आह ना पूछो क्या-क्या रंग बदलता है!
खून हुआ दिल दाग हुआ फिर दर्द हुआ फिर गम है अब!!
---मीर---
दुनिया की इस अंधी दौड़ में सब कुछ तो हासिल है हमें!
फिर भी बैठ के सोचा करते,क्या ज्यादा,क्या कम है अब!!
---keshvendra---
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तुम नही पास, कोई पास नहीं!
अब मुझे जिन्दगी की आस नहीं!!
साँस लेने में दर्द होता है!
अब हवा जिन्दगी की रास नहीं!!
-------जिगर बरेलवी----
इस निगोड़ी जाम से जो बुझ जाये!
ऐसी ओछी हमारी प्यास नही!!
मेरी खुद्दारी को ललकारो नही!
ये किसी के पैरों तले की घास नहीं!!
------केशवेन्द्र------
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दिल धड़कने से खफा है और आँखें नम नहीं!
पीछे मुडके देखने की यह सजा कुछ कम नहीं!!
-----शहरयार------
तेरे हुश्न की खुशबू से जुट जायेंगे भँवरे कई नए!
देखना उस भीड़ में सब होंगे, होंगे हम नहीं !!
---केशवेन्द्र---
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इस सफ़र में बस मेरी तन्हाई मेरे साथ थी!
हर कदम क्यों खौफ मुझको भीड़ में खोने का था!!
***शहरयार***
जो नही था और हो सकता नहीं था मैं कभी!
बार-बार मुझको गुमाँ, क्यूँ वही होने का था!!
***केशवेन्द्र***
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उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज
- Gulab Khandelwal
चहकती-बहकती जितनी खुशियाँ थी मेरे हिस्से
खुशियों का लिबास ओढ़े उतने गम हैं आज.
--केशवेन्द्र--
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ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
- जां निसार अख्तर
हमने मांगी ज़ेहन से कुछ बहानों की 'थपकियाँ '
जो सीने में क़ैद आरजुओं को सुलाने के लिए हैं
- Taru
औरों के गम उधार लेते फिरने का पूछो ना सबब हमसे
ये अपनी बंजर पड़ी आँखों को फिर से रुलाने के लिए हैं.
**केशवेन्द्र**
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नींदें तो टूटती हैं कई बार रात में
इक ख्वाब है जो फ़िर भी कभी टूटता नहीं
---अशोक मिजाज----
दुनिया तो मतलबी है, रूठती है बात-बात पर
एक तू है, हमसे रूठ कर भी कभी रूठता नही
----केशवेन्द्र-----
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ढूंढता है खुलूस लोगों में
ये जो नादान मुझमें रहता है
ग़म किसी का हो ग़म समझता हूँ
अब भी इंसान मुझमें रहता है
हसरतें, आरजू, लगन, चाहत
ग़म का सामान मुझमें रहता है
===ज़फर रज़ा===
प्रार्थनाएँ सुनता हूँ बहरों कि तरह
लगता है भगवान मुझमें रहता है.
----केशवेन्द्र-----
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टिप्पणियाँ
इक ख्वाब है जो फ़िर भी कभी टूटता नहीं
ashok mizaj sahab ne kamal kar dia