तूने चोट दी है ऐसे, जैसे डंक हो बिच्छू के

खुशबू का एक झोंका, आया है तुझको छू के!



आँखों से एक आंसू, छलका, गिरा है चू के !!



झगडे के बाद बीबी-मियां, बैठे हैं गुमसुम से !

याद आ रहे दिन प्रेम भरे, उनको हैं शुरू के!!



कैसा सुकून मिलता है, कहने में नही आता!


बुजुर्गों की दुआ लेते हुए, उनके पाँव छू के!!



छूटी है पाठशाला, मगर अब भी ये लगता है!

सर पर बने हुए है हाथ, अब भी मेरे गुरू के !!



सीने में कितना दर्द है, ये मुझको ही है मालूम!


तूने चोट दी है ऐसे, जैसे डंक हो बिच्छू के!!



कुछ रिश्ते नही बदलते, बदलने के ज़माने से !

पर मोटर बोटों के आते ही, दिन लदते हैं चप्पू के!!



पप्पू को दुनिया वालों ने घोंचू भले हो माना!


आई है खबर इस बार, टॉप होने के पप्पू के!!

टिप्पणियाँ

KESHVENDRA IAS ने कहा…
Shukriya Suman ji.
Pawan Kumar ने कहा…
कैसा सुकून मिलता है, कहने में नही आता!
बुजुर्गों की दुआ लेते हुए, उनके पाँव छू के!!
वाह.................केशव........परम्पराओं को क्या खूब रवानगी बख्शी है हुज़ूर......! पप्पू वाला शेर नए शिल्प की बयानी है.....शायरी में आपकी तबियत लगने लगी है....अच्छा है.....! सुन्दर लेखन के लिए बधाई .
KESHVENDRA IAS ने कहा…
Pawan Bhai, bahut-bahut shukriya. Aapke shabd or achha likhne ko hamesha prerit karte hain.

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