स्वर्णमृग
पूरा जग ही माया है
कोई पार ना पाया है
रूप के पीछे हम भी, तुम भी
इसने जग भरमाया है
जूते घिसे, घिस गए तलवे
कुछ भी हाथ ना आया है
जिसके पीछे अबतक थे हम
देखा केवल साया है
अन्दर क्या है देखा किसने
दिखती केवल काया है
जब भी हमने देखा उसको
देखा वो शरमाया है
देखा आज जिसे फूल सा खिला
देखा कल कुम्हलाया है
उसको जब भी हँसते देखा
खुद को बेखुद पाया है
हरदम मेरे साथ चला कोई
देखा उसका साया है
खुद को जब भी तन्हा पाया
उसको पास ही पाया है
चाहे जितनी कड़ी धूप हो
सर पे उसका साया है
चाहूँ भी तो छूट ना सकता
ऐसा फांस फंसाया है
आई मन में उसकी ही छवि
जब भी कोई याद आया है
खोया है हम ने सब कुछ
तब जाकर खुद को पाया है
उसकी आँखों में जो झाँका
अपना अक्स ही पाया है
दोराहे पर ठिठका खड़ा हूँ
वक़्त कहाँ हमें लाया है
याद साथ तेरी, कलम हाथ मेरे
जीवन पन्नों पर छितराया है
रहो जहाँ भी, रहो खुश सदा
दिल ने ये फ़रमाया है
अब मैं हूँ और कलम संग है
शब्द मेरा सरमाया है.
(24 अप्रैल 2003 )
कोई पार ना पाया है
रूप के पीछे हम भी, तुम भी
इसने जग भरमाया है
जूते घिसे, घिस गए तलवे
कुछ भी हाथ ना आया है
जिसके पीछे अबतक थे हम
देखा केवल साया है
अन्दर क्या है देखा किसने
दिखती केवल काया है
जब भी हमने देखा उसको
देखा वो शरमाया है
देखा आज जिसे फूल सा खिला
देखा कल कुम्हलाया है
उसको जब भी हँसते देखा
खुद को बेखुद पाया है
हरदम मेरे साथ चला कोई
देखा उसका साया है
खुद को जब भी तन्हा पाया
उसको पास ही पाया है
चाहे जितनी कड़ी धूप हो
सर पे उसका साया है
चाहूँ भी तो छूट ना सकता
ऐसा फांस फंसाया है
आई मन में उसकी ही छवि
जब भी कोई याद आया है
खोया है हम ने सब कुछ
तब जाकर खुद को पाया है
उसकी आँखों में जो झाँका
अपना अक्स ही पाया है
दोराहे पर ठिठका खड़ा हूँ
वक़्त कहाँ हमें लाया है
याद साथ तेरी, कलम हाथ मेरे
जीवन पन्नों पर छितराया है
रहो जहाँ भी, रहो खुश सदा
दिल ने ये फ़रमाया है
अब मैं हूँ और कलम संग है
शब्द मेरा सरमाया है.
(24 अप्रैल 2003 )
टिप्पणियाँ
Kyaa Baat Hai... bahut achche..
http://ashishcogitations.blogspot.com/